तुम क्यों होते हो परेशान
आई जीवन की अगर शाम
तुम क्यों होते हो परेशान
ये रात अमां की ना काली ,भैया ये तो दीवाली है
तुम इसे मुहर्रम मत समझो,ये ईद सिवइयों वाली है
तुमने उगता सूरज देखा ,तपती दोपहरिया भी देखी
यौवन के खिलते उपवन को ,महकाती कलियाँ भी देखी
हंसती गाती और मुस्काती ,दीवानी परियां भी देखी
कल कल करती नदियां देखी ,तूफानी दरिया भी देखी
कब रहा एक सा है मौसम
खुशियां है कभी तो कभी गम
सूखे पतझड़ के बाद सदा ,आती देखी हरियाली है
ये ईद सिवइयों वाली है
कितनी ही ठोकर खाकर तुम ,चलना सीखे,बढ़ना सीखे
हर मोड़ और चौराहे पर ,पाये अनुभव ,मीठे ,तीखे
जी जान जुटा कर लगे रहे ,अपना कर्तव्य निभाने को
दिनरात स्वयं को झोंक दिया, तुमने निज मंजिल पाने को
सच्चे मन और समर्पण से
तुम लगे रहे तन मन धन से
तुम्हारी त्याग तपस्या से ,घर में आयी खुशियाली है
ये ईद सिवइयों वाली है
अब दौर उमर का वो आया ,मिल पाया कुछ आराम तुम्हे
निभ गयी सभी जिम्मेदारी ,अब ना करना है काम तुम्हे
अब जी भर कर उपभोग करो ,तुमने जो करी कमाई है
खुद के खातिर भी जी लेने की ,ये घडी सुहानी आई है
क्या हुआ अगर तुम हुए वृद्ध
अनुभव में हो सबसे समृद्ध
लो पूर्ण मज़ा ,क्योंकि ये उमर ,अब तो बे फ़िक्री वाली है
ये ईद सिवइयों वाली है
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
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