आओ हम संग संग धूप चखें
हो सूरज किरण से आलोकित ,दूना तुम्हारा रूप सखे
इस ठिठुराती सी सर्दी में आओ हम संग संग धूप चखें
निज नाजुक कर से मालिश कर ,तुम मेरे सर को सहलाओ
मैं छील मुंगफलियाँ तुमको दूं,तुम गजक रेवड़ी संग खाओ
आ जाए दोहरा मज़ा अगर, मिल जाए पकोड़े खाने को ,
और संग में हो गाजर हलवा जो मौसम के अनुरूप सखे
आओ हम संग संग धूप चखें
मक्की की रोटी गरम गरम और संग साग हो सरसों का
मख्खन से हाथों से खाऊं ,पूरा हो सपना बरसों का
हो उस पर गुड़ की अगर डली,गन्ने के रस की खीर मिले ,
सोने पे सुहागा हो जाए ,हमको सुख मिले अनूप सखे
आओ हम संग संग धूप चखे
मैं कार्य भार से मुक्त हुआ ,चिंता है नहीं फिकर कोई
हम चौबीस घंटे साथ साथ ,मस्ती करते,ना डर कोई
सूरज ढलने को आया पर ,मन में ऊर्जा है ,गरमी है,
हो गयी शाम,चुस्की ले ले,अब पियें टमाटर सूप सखे
आओ हम मिलकर धूप चखें
मदनमोहन बाहेती;घोटू'
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