आशिक़ी का मजा
ठीक से ना देख पाते ,नज़र भी कमजोर है
अस्थि पंजर हुए ढीले ,नहीं तन में जोर है
खाली बरतन की तरह हम खूब करते शोर है
दिल की इस दीवानगी का मगर आलम और है
देख कर के हुस्न को बन जाता आदमखोर है
हमेशा ये दिल कमीना ,मांगता कुछ 'मोर ' है
शाम ढलती है ,उमर का ,आखिरी ये छोर है
बुढ़ापे की आशिकी का ,मज़ा ही कुछ और है
घोटू
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