वो पुराना जमाना
आज जब जीवन,
बड़ी तेजी से बदलता जा रहा है
हमें रह रह कर ,
वो पुराना जमाना याद आ रहा है
तब जब न सर्फ़ था ,न एरियल था ,न टाइड था
बस सिर्फ एक साबुन सनलाइट था ,
जिससे घर भर के सारे कपडे धुला करते थे
और कुछ लोग उससे नहा भी लिया करते थे
वैसे नहाने के लिए ,लाइफबॉय की लाल बट्टी
आया करती थी काम
या फिर कुछ लोग काम में लेते थे जय और हमाम
वैसे उन दिनों लक्स साबुन भी पॉपुलर था ,
जिसे विज्ञापन सिने तारिकाओं के सौंदर्य का
रहस्य बतलाते थे
भले ही उससे डेविड,शेट्टी और ओमपूरी भी नहाते थे
बचे हुए साबुन की चीपटों से ,
शौच के बाद हाथ साफ़ किये जाते थे
वैसे इस काम के लिए ,मिट्टी और राख ,
काम में लिए जाते थे
औरते,काली मिटटी और दही मिला कर ,
सर के बालों को धोने के लिए काम में लाती थी
और मेकअप के लिए अफगान स्नो लगाती थी
न तरह तरह के शेम्पू होते थे ,न कंडीशनर थे
सिर्फ ब्राह्मी आंवला तेल ,लगाते सर पर थे
न परफ्यूम थी या सेंट या डियो थे
लोग कान में रखते इत्र के फुहे थे
उन दिनों कूलर और ए सी नहीं होते थे
रात को लोग ,खुली छतों पर सोते थे
गर्मी में हाथ से पंखा डुलाते थे
और गर्मी से निजात पाते थे
मटके और सुराही का पानी पीते थे
और खुश होकर जीवन जीते थे
न कोकोकोला था ,न पेप्सी थी ,
न थम्सअप का जोश था
फिर भी सबके मन में संतोष था
थोड़ी सी पगार और बहुत बड़ा परिवार
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी लेते थे जीवन गुजार
छोटा भाई,बड़े भाई के छोटे हुए कपडे पहनता था
टीवी के सीरियल नहीं थे ,
दादी,नानी की कहानियों से मन बहलता था
रोज दाल रोटी खाते थे ,
बस कभी कभी ही पकवान छनते थे
त्योंहारों पर ही ,
पूरी और पूवे बनते थे
पिज़्ज़ा,पास्ता या बर्गर
या फिर दो मिनिट में बनने वाले नूडल
लोग इन सबके नाम से भी अनजान थे
सीधीसादी जिंदगी थी,भोले भाले इंसान थे
पर जबसे इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने डेरा डाला है
नई नई ब्रांडों के चक्कर ने ,
सारा बजट ही बिगाड़ डाला है
हर काम के लिए ,अलग अलग प्रोडक्ट ,
और अलग अलग ब्रांड आ गए है
विज्ञापन के बल पर लोगों के ,
दिलो दिमाग पर छा गए है
ब्रांडेड चीजों का उपयोग ,
एक स्टेटस सिम्बल बन गया है
सब लोग खोजते है,क्या नया है
इसी चक्कर में चीजों के दाम,
आसमान पर चढ़ गए है
खरचे बेहताशा बढ़ गए है
मंहगी वस्तुए ,लोगो की पसंद हो गयी है
और जबसे ये माल खुल गए है,
छोटी दुकाने बंद हो गयी है
चार आने वाली चाट ,बड़े बड़े रेस्टारेंट में
चालीस रूपये की मिलती है
और फिर भी खरीदने के लिए
लोगों की लाइन लगती है
देखिये ,कैसे दिन आ रहे है
लोग जेब कटवा कर भी मुस्करा रहे है
जीवनशैली का ये परिवर्तन ,
हमे कहाँ से कहाँ ले जा रहा है
मुझे आज फिर वो पुराना जमाना याद आरहा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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