जल से
ए जल ,
चाहे तू पहाड़ों पर
उछल उछल कर चल
या झरने सा झर
या नदिया बन कर
कर तू कल कल
या कुवे में रह दुबक कर
या फिर तू सरोवर
की चार दीवारी में रह बंध कर
या बर्फ बन जा जम कर
या उड़ जा वाष्प बन कर
या फिर बन कर बादल
तू कितने ही रूप बदल
तेरी अंतिम नियति है पर
खारा समंदर
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
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