मन बहला लिया करता
मैं अपने मन को बस इस तरह से ,बहला लिया करता
तुम्हारे हाथ, कोमल उँगलियाँ ,सहला लिया करता
कभी कोशिश ना की,पकड़ ऊँगली,पहुँचू ,पोंची तक,
मैं अपनी मोहब्बत को ,इस तरह रुसवा नहीं करता
जी करता है बढ़ूँ आगे ,शराफत रोक लेती पर ,
जबरजस्ती कभी ना, तुमसे 'हाँ' कहला लिया करता
भावना की नदी में जब उमड़ कर बाढ़ आती है,
मैं उसका रुख ,किसी और रास्ते ,टहला लिया करता
जाम हो सामने ,पीने की पर जुर्रत न कर पाता ,
सब्र का घूँट पीकर ,खुद को मैं बहला लिया करता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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