बात मुझसे मत करो
बुढ़ापे में लड़कपन की ,बात मुझसे मत करो
जवानी ,बेधड़कपन की,बात मुझसे मत करो
उमर की चाय में डूबे ,लुगलुगे अब होगये ,
बिस्कुटों के कड़कपन की ,बात मुझसे मत करो
गिल्ली डंडा खेलने के दिन पुराने लद गये ,
खेलते थे जब दनादन ,बात मुझसे मत करो
चटकती कलियाँ थी जिन पर मंडराती थी तितलियाँ ,
महकते से उस चमन की ,बात मुझसे मत करो
निकलते तो खिड़कियों से झांकती थी लड़कियां ,
हमारे उस बांकपन की ,बात मत मुझसे करो
लिपट जिससे होंश खोते ,होते थे मदहोश हम,
महकते चंदन बदन की ,बात मत मुझसे करो
आया कब और पंख फैला कब अचानक उड़ गया ,
बीत कैसे गया यौवन ,बात मत मुझसे करो
संग थे खुशिया बरसती ,और सुखी परिवार था ,
बिखरों के बेगानेपन की ,बात मुझसे मत करो
कहीं पर ईंटे है टूटी ,कहीं उखड़ा पलस्तर ,
खंडहर होते भवन की ,बात मुझसे मत करो
ना तो समिधाएं बची है और ना है आहुति ,
पूर्ण होते इस हवन की ,बात मत मुझसे करो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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