हौंसले -माँ के
भले उम्र ने अपना असर दिखाया है
जीर्ण और कमजोर हो गयी काया है
श्वेत हुए सब केश ,बदन है झुर्राया
आँखें धुंधली धुंधली,चेहरा मुरझाया
बिना सहारा लिए ,भले ना चल पाती
मुश्किल से ही आधी रोटी ,बस खाती
और पाचनशक्ति भी अब कुछ मंद है
मगर हौंसले ,माँ के बहुत बुलंद है
कमजोरी के कारण थोड़ी टूटी है
चुस्ती फुर्ती ,उसके तन से रूठी है
हालांकि कुछ करने में मुश्किल पड़ती
काम कोई भी हो ,करने आगे बढ़ती
ऊंचा बोल न पाती,ऊंचा सुनती है
लेटी लेटी ,क्या क्या सपने बुनती है
कोई आता मिलता उसे आनंद है
मगर हौंसले माँ के बहुत बुलंद है
हाथ पैर में ,बची न ज्यादा शक्ति है
मोह माया से ,उसको हुई विरक्ति है
तन में हिम्मत नहीं मगर हिम्मत मन में
कई मुश्किलें ,हंस झेली है जीवन में
अब भी किन्तु विचारों में अति दृढ़ता है
उसको कुछ समझाना मुश्किल पड़ता है
खरी खरी बातें ही उसे पसंद है
मगर हौंसले ,माँ के बहुत बुलंद है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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