अंकलजी
अंकल जी
हमारे हर काम में आप क्यों देते हो दखल जी
अंकल जी
हम जो भी करते है ,हमें करने दो ,
हमसे कुछ न कहो
हम अपने में खुश है और आप भी ,
अपने में खुश रहो
हमारे जीने के ढंग पर टेढ़ी नज़र न लगाओ
'चिल 'की 'पिल 'लेकर चैन से सो जाओ
हमें ये न करो ,वो न करो कह कर टोकते हो
बात बात पर नसीहत देकर रोकते हो
ये मत भूलो कि हम वर्तमान है , आज है
जमाने पर हमारा राज है
कल देश की बागडोर हमें सम्भालनी है
हम पढ़े लिखे यूथ है, हम में क्या कमी है
और आप बुझते हुए चिराग है,बोनस में जी रहे है
तो क्यों हर बात पर अड़ंगा लगा कर ,हमारा खून पी रहे है
आप अब हो गये है बीता हुआ कल जी
अंकल जी
हम होली के त्योंहार पर ,पानी भरे गुब्बारे
अगर फेंक कर किसी पर मारे
तो आप हो जाते है नाराज
और हमें डाटते है होकर के लाल पीला
और वो आपके किशन कन्हैया
जब फेंक कर के कंकरिया
फोड़ा करते थे गोपियों की गगरिया
तो उसको आप कहते है भगवान की बाल लीला
आप मन में क्यों इतना भेदभाव रखते है
हमें डाटते है और उनका नाम जपते है
हमारी ग्रेटनेस देखो ,हम फिर भी ,
भले ही ऊपरी मन से ,आपकी इज्जत करते रहते है
कभी भी आपको बूढा खूसट नहीं कहा ,
हमेशा आपको अंकल जी कहते है
और आप सरे आम
करते है हमें बदनाम
हमेशा हमारे काम में टांग अड़ाते हो
हमारी शिकायत कर ,
मम्मी पापा से डांट पड़वाते हो
अरे हमारा तो बाल स्वभाव है ,
और बच्चे होते है चंचल जी
अंकल जी
देखो ,हम जब तक अच्छे है ,अच्छे है
पर मुंहफट है ,अकल के कच्चे है
हम भी सब पर नज़र रखते है ,
हमारा मुंह मत खुलवाओ
हमसे कड़वा सत्य मत बुलवाओ
हमें तो हमारी ताका झांकी कर लताड़ते हो
पर हमने देखा है ,मौका मिलने पर ,
आप भी आती जाती आंटियों को ताड़ते हो
बुझती हुई आँखों में रौशनी आ जाती है
चेहरे पर मुस्कराहट छा जाती है
झुकी हुई कमर तन जाती है और
शकल चमकने लगती है
सुंदरियों को देख कर आपकी लार टपकने लगती है
आपकी आशिकमिजाजी ,बीते दिनों की यादें दिला ,
आपको करती है बेकल जी
अंकल जी
हमारी उमर में आपने भी क्या क्या शैतानिया की थी ,
क्या गए हो भूल
आपने खिलाये थे क्या क्या गुल
कितनी लड़कियों को छेड़ा था
कितनी बार किया बखेड़ा था
और हम कुछ करें तो खफा होते हो
नाराज हम पर हर दफा होते हो
अंकल ,अब जमाना बदल गया है
अब खुल्लमखुल्ला सब कुछ चलता है
संस्कार का सूरज पहले पूरब से निकलता था
अब पश्चिम से निकलता है
क्या आपके जमाने में होते थे टेलीविज़न और इंटरनेट
क्या कभी आपने आंटीजी से किया था मोबाइल पर चेट
आज की पीढ़ी ,पुआ परांठे नहीं ,पीज़ा बर्गर खाती है
घर पर खाना नहीं बनता ,फोन कर बाज़ार से खाना मंगाती है
आज की लड़कियां ,हमारी उमर के लड़कों से ,
छेड़छाड़ की अपेक्षा रखती है
नहीं तो उन्हें निरा पोंगा पंडित समझती है
आप भी थोड़ा सा ,जमाने के मुताबिक़ ढल जाओ
नयी पीढ़ी के संग ,सुर में सुर मिलाओ
तभी होगी आपकी कदर जी
अंकल जी
मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
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