शादी का विज्ञापन
मैं अब तक बैठा कंवारा हूँ
अब शादी करने वाला हूँ
बहुत दिनों तक सहन किया ,लेकिन अब सहा नहीं जाता
मम्मी सुनती ही नहीं कभी ,डैडी से कहा नहीं जाता
शादी की मीठी बातों से ही पेट न मेरा भरता भरता है
मुझ सामाजिक प्राणी को सूनापन बहुत अखरता है
दिल मेरा खाली पड़ा हुआ ,कोई ना जिससे प्यार करूं
मेरी अब तक शादी न हुई ,बोलो कब तक इन्तजार करूं
शादी का नाम कभी सुनता ,मुंह में पानी भर आता है
लक्ष्मी घर में आ जायेगी ,फिर फादर का क्या जाता है
मम्मी डैडी ना सुनते है तो खुद पर है अधिकार मुझे
आखिर कभी बसाना ही तो है अपना संसार मुझे
नहीं कंवारा रह कर अब मैं काट सकूंगा निज जीवन
होकर निर्लज्ज कर रहा हूँ मैं निज शादी का वज्ञापन
ऐसी बीबी की चाह मुझे ,पाकर जिसको ,मुझको सुख हो
थोड़ी काली भी चल सकती पर पढ़ीलिखी हो ,नाजुक हो
ज्यादा फेशनवाली न बने जो हरदम सजधज कर निकले
एम ए ,बी ए की चाह नहीं ,बस चिट्ठीपत्री पढ़ लिख ले
परदे से हो परदा जिसको ,लेकिन फिर भी शरमीली हो
नाक कान कट अच्छा हो ,आँखें जिसकी चटकीली हो
जो चूल्हा भी फूंक सके हो पाकशास्त्र का ज्ञान जिसे
घर और बच्चों कीउलझन में भी रहे पति का ध्यान जिसे
गाना आता तो अच्छा है ,मीठी बातें करना जाने
देवर ननदों से प्यार करे ,सासूजी का कहना माने
छरहरा बदन ,दुबली पतली लेकिन ना फुदके तितली सी
आँखे चमकीली तो होंगी ,लेकिन ना चमके बिजली सी
सुन्दर हो पर निज सुंदरता पर ज्यादा ना इतराये वो
खुद नाच न जाने चल सकता पर मुझको नहीं नचाये वो
ध्यान रहे कि अधिक दिनों तक रह न सकेगी पीहर में
संतुष्ट उसे रहना होगा ,मेरे छोटे ,अपने घर में
यदि गुस्से में कुछ कह दूँ तो वो मेरा बुरा न मानेगी
देवी सी पूजूंगा उसको यदि वो पति को परमेश्वर जानेगी
दिल नहीं टूट जाए उसका यह ख्याल रखूंगा मैं हर क्षण
पर मुझको गरजू ना समझे ,शादी की देकर विज्ञापन
मेरा दिल भी आखिर दिल है ,बचपन की सीढ़ी पार करी
मैं बहुत दिनों से कंवारा हूँ ,अब मेरी राखो लाज हरी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(उपरोक्त कविता साथ वर्ष पूर्व लिखी गयी थी )
मैं अब तक बैठा कंवारा हूँ
अब शादी करने वाला हूँ
बहुत दिनों तक सहन किया ,लेकिन अब सहा नहीं जाता
मम्मी सुनती ही नहीं कभी ,डैडी से कहा नहीं जाता
शादी की मीठी बातों से ही पेट न मेरा भरता भरता है
मुझ सामाजिक प्राणी को सूनापन बहुत अखरता है
दिल मेरा खाली पड़ा हुआ ,कोई ना जिससे प्यार करूं
मेरी अब तक शादी न हुई ,बोलो कब तक इन्तजार करूं
शादी का नाम कभी सुनता ,मुंह में पानी भर आता है
लक्ष्मी घर में आ जायेगी ,फिर फादर का क्या जाता है
मम्मी डैडी ना सुनते है तो खुद पर है अधिकार मुझे
आखिर कभी बसाना ही तो है अपना संसार मुझे
नहीं कंवारा रह कर अब मैं काट सकूंगा निज जीवन
होकर निर्लज्ज कर रहा हूँ मैं निज शादी का वज्ञापन
ऐसी बीबी की चाह मुझे ,पाकर जिसको ,मुझको सुख हो
थोड़ी काली भी चल सकती पर पढ़ीलिखी हो ,नाजुक हो
ज्यादा फेशनवाली न बने जो हरदम सजधज कर निकले
एम ए ,बी ए की चाह नहीं ,बस चिट्ठीपत्री पढ़ लिख ले
परदे से हो परदा जिसको ,लेकिन फिर भी शरमीली हो
नाक कान कट अच्छा हो ,आँखें जिसकी चटकीली हो
जो चूल्हा भी फूंक सके हो पाकशास्त्र का ज्ञान जिसे
घर और बच्चों कीउलझन में भी रहे पति का ध्यान जिसे
गाना आता तो अच्छा है ,मीठी बातें करना जाने
देवर ननदों से प्यार करे ,सासूजी का कहना माने
छरहरा बदन ,दुबली पतली लेकिन ना फुदके तितली सी
आँखे चमकीली तो होंगी ,लेकिन ना चमके बिजली सी
सुन्दर हो पर निज सुंदरता पर ज्यादा ना इतराये वो
खुद नाच न जाने चल सकता पर मुझको नहीं नचाये वो
ध्यान रहे कि अधिक दिनों तक रह न सकेगी पीहर में
संतुष्ट उसे रहना होगा ,मेरे छोटे ,अपने घर में
यदि गुस्से में कुछ कह दूँ तो वो मेरा बुरा न मानेगी
देवी सी पूजूंगा उसको यदि वो पति को परमेश्वर जानेगी
दिल नहीं टूट जाए उसका यह ख्याल रखूंगा मैं हर क्षण
पर मुझको गरजू ना समझे ,शादी की देकर विज्ञापन
मेरा दिल भी आखिर दिल है ,बचपन की सीढ़ी पार करी
मैं बहुत दिनों से कंवारा हूँ ,अब मेरी राखो लाज हरी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(उपरोक्त कविता साथ वर्ष पूर्व लिखी गयी थी )
No comments:
Post a Comment