Wednesday, October 16, 2019

Aआत्मदीप 

लो फिर से आगयी दीवाली 
मेरे मन के दीप्त दीप पर 
उस प्रदीप पर 
काम क्रोध के 
प्रतिशोध के 
वे बेढंगे 
कई पतंगे 
षट रिपु जैसे थे मँडराये
मुझ पर छाये
पर मैंने तो 
उनको सबको 
बाल दिया रे 
अपने मन से 
इस जीवन से 
मैंने उन्हें निकाल दिया रे 
मगन मैं जला 
लगन से जला 
और मैंने शांति की दुनिया बसा ली 
लो फिर से आगयी दिवाली 

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