पैसे की दास्तान
कल बज रहा था एक गाना
बहुत पुराना
ओ जाने वाले बाबू ,एक पैसा दे दे
तेरी जेब रहे ना खाली
तेरी रोज मने दीवाली
तू हरदम मौज उड़ाए
कभी न दुःख पाए -एक पैसा दे दे
एक पैसे का नाम सुन
मेरी आँखों के आगे लौट आया बचपन
जब था एक पैसे के मोटे से सिक्के का चलन
माँ के पैर दबाने पर
या दादी की पीठ खुजाने पर
हमें कई बार पारितोषिक के रूप में मिलता था ,
उगते सूरज की ताम्र आभा लिए
एक पैसे का सिक्का ,
जब हाथ में आता था
बड़ा मन भाता था
हमें अमीर बना देता था
ककड़ी वाला लम्बा गुब्बारा दिला देता था
या नारंगी वाली मीठी गोली खिला देता था
हमारे बड़े ठाठ हो जाते थे
हम कभी आग लगा हुआ चूरन ,
या कभी चने की चाट खाते थे
बचपन का वह बड़ा हसीन दौर होता था
खुद खरीद कर खाने का ,
मजा ही कुछ और होता था
वो एक पैसे का ताम्बे का सिक्का ,
हमें थोड़ी देर के लिए रईस बना देता था
और उस दिन उत्सव मना देता था
जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया ,
पैसा छोटा होता गया
और एक दिन किसी ने उसकी आत्मा ही छीन ली
उसका दिल कहीं खो गया
और वो एक छेद वाला पैसा हो गया
जैसे जैसे उसकी क्रयशक्ति क्षीण होती गयी
उसकी काया जीर्ण होती गयी
और एक दिन वो इतना घट गया
कि माँ की बिंदिया जितना ,
एक नया पैसा बन कर सिमट गया
पता नहीं जेब के किस कोने में खिसक जाता था
गिर भी जाता तो नज़र नहीं आता था
न उसमे खनक थी ,न रौनक थी,
और उसकी क्रयशक्ति भी हो गया था खात्मा
ऐसा लगता था की बीते दिनों की याद कर ,
आंसू बहाती हुई है कोई दुखी आत्मा
उसके भाई बहन भी आये जो
दो,पांच और दस पैसे के चमकीले सिक्के थे
पर मंहगाई की हवा में सब उड़ गए ,
क्योंकि वो बड़े हलके थे
फिर चवन्नी गयी ,अठन्नी गयी ,
रूपये का सिक्का नाम मात्र को अस्तित्व में है ,
पर गरीब दुखी और कंगाल है
अगर जमीन पर पड़ा भी मिल जाए
तो लोग झुक कर उठाने की मेहनत नहीं करते ,
इतना बदहाल है
अब तो भिखारी भी उसे लेने से मना कर देता है ,
उसे पांच या दस रूपये चाहिये
बस एक भगवान के मंदिर में कोई छोटा बड़ा नहीं होता
आप जो जी में आये वो चढ़ाइये
पैसे की हालत ये हो गयी है कि
उसका अस्तित्व लोप हो गया है ,बस नाम ही कायम है
कई बार यह सोच कर होता बड़ा गम है
लोग कितने ही अमीर लखपति करोड़पति बन ,
पैसेवाले तो कहलायेंगे
पर आप अगर उनके घर जाएंगे
तो शायद ही एक पैसे का कोई सिक्का पाएंगे
उनके बच्चों ने कदाचित ही ,एक पैसे के
ताम्बे के सिक्के की देखी होगी शकल
क्योंकि अपने पुरखों को कौन पूजता है आजकल
बस उनका 'सरनेम 'अपने नाम के साथ लगाते है
वैसे ही लोग पैसा तो नहीं रखते ,
पर पैसेवाले कहलाते है
वाह रे पैसे
तूने भी बुजुर्गों की तरह ,
दिन देख लिए है कैसे कैसे
मदन मोहन बाहेती ' घोटू '
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