Saturday, February 15, 2020

पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?

इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?

फंसे रह कर मोहमाया जाल में ,
मैंने बस यूं ही बिता दी  जिंदगी
बीते दिन पर डालता  हूँ जब नज़र ,
मुझे खुद पर होती है शर्मिंदगी
कितने दिन और कितने ही अवसर मिले ,
मूर्ख मैं अज्ञानवश  खोता रहा
वासना के समंदर में तैरता ,
बड़ा खुश हो लगाता गोता रहा
अब कहीं जा आँख जब मेरी खुली ,
वक़्त इतना कम बचा है क्या करूंगा
इस जनम  में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूँगा

सुनते चौरासी हजारों योनियां ,
भोगने उपरांत मानव तन मिले
पुण्य कर ना तरा योनि फेर से ,
शुरू होंगे फिर से वो ही सिलसिले
मैं अभागा ,मूर्ख था ,नादान था ,
राम में ना रमा पाया अपना मन
दुनिया के भौतिक सुखों में लीन हो ,
भुला बैठा मैं सभी सदआचरण
नहीं है सद्कर्म संचित कोष में ,
पार बेतरणी भला  कैसे करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका
पता ना अगले जनम में क्या बनूंगा

मदन मोहन बहती 'घोटू '

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