Sunday, February 16, 2020

अठहत्तरवें  जन्मदिवस पर

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मन मदन,मस्तिष्क मोहन,मद नहीं और मोह भी ना

और मै बहती हवा सा,सुगन्धित हूँ,मधुर, भीना

कभी गर्मी की तपिश थी,कभी सर्दी थी भयंकर

कभी बारिश की फुहारों का लिया आनंद जी भर

कभी अमृत तो गरल भी,मिला जो पीता गया मै

विधि ने जो भी लिखा उस विधि जीता रहा मै

कभी सुख थे ,कभी दुःख थे,कभी रोता,कभी हँसता

कई जीवन रंग देखे, हुआ अठहत्तर  बरस का


मदन मोहन बहेती 'घोटू '

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