Thursday, April 30, 2020

विवाह की वर्षगाँठ पर

मैं अठत्तर ,तुम तिहत्तर ,ख़ुशी का उत्सव मनायें
पर्व पावन ,ये मिलन का ,प्यार की ज्योति जलायें
मिलन का संयोग अपना ,लिखा ऐसा विधाता ने
एक दूजे की ,उमर भर ,रहेंगे हम बांह थामे
परिस्तिथियाँ ,कठिन से भी कठिन हो ,देंगे सहारा
हृदय में तुमको बिठा कर , उदेलेंगे प्यार सारा
दो बदन एक जान है हम ,दो हृदय पर एक धड़कन
प्रेम अपना ,एक दूजे को रहें करते समर्पण
हँसते हँसते ,यूं ही जीवन ,काट दे ,रूठें ,मनाये
पर्व आया है मिलन का ,प्यार की ज्योति जलाये

घोटू 
घोटू के पद

कोरोना ,जाओ तुम्हे हम जाने
 चमगादड़ के जाये हो तुम ,लोग तुम्हे पहचाने
चीन देश ने भेजा तुमको ,अपना जाल बिछाने
फ़ैल रहे तुम ,दिन दिन दूने ,सबको लगे सताने
कितनो के ही प्राण गमाये ,तुम्हारी विपदा ने
बच कर रहे सभी अब तुमसे,पास नहीं दे आने
घर में रहे,मुंह ढक घूमे ,कितने लोग सयाने
अपनों का स्पर्श न करते ,अपने अब  बेगाने
कोरोना ,जाव तुम्हे हम जाने

घोटू 
घोटू के पद

कोरोना की मार -विरहन की पुकार

प्रिय तुम ,कोरोना डर भागे
जबसे तुमसे नयन मिले है ,प्रेम भाव मन जागे
मिलन प्रतीक्षा में व्याकुल है ,प्यासे नयन अभागे
मैं तुम्हारी प्रेम पुजारन , सब जग बंधन त्यागे
करूं समर्पित ,निज सरवस मैं ,अगर पियाजी मांगे
तुम आये ,दूरी से देखा ,दो पग बढे न आगे
विरह पीड़ से तप्त बदन लख,गरम गरम सी साँसे
घोटू  तुम कोरोना डर से ,उलटे पैरों   भागे

घोटू    

Wednesday, April 29, 2020

सम्भावनाये

बड़े अरमान से बेटे की ,शादी सब किया करते ,
मगर ये जिंदगी का रुख किधर भी मोड़ सकती है
भाग्य पे होता ये निर्भर कि मिलती है बहू कैसी ,
अगर मिल जाए अच्छी तो वो रिश्ते जोड़ सकती है
सपन जो पोती पोते को ,खिलाओगे तुम गोदी में ,
भरे अरमान जो मन में ,वो सपने तोड़ सकती है
बुढ़ापे में सहारे  को  ,बनेगा बेटा एक लाठी ,
उसी लाठी से तुम्हारा ,वो सर भी फोड़ सकती है

कभी भी मत रखो ज्यादा ,किसी से आस तुम कोई ,
अपेक्षा  जब ,उपेक्षा  बनती है, दिल टूट जाता है
बसा लेता वो घर अपना ,अलग तुमको या कर देता ,
तुम्हारा लाडला बेटा ,तुम्ही से रूठ जाता है
यूं खट कर जो कमाते हो ,बचत खुद पर खपत करदो ,
नहीं तो वक़्त का डाकू ,सभी कुछ लूट जाता है
जब जाओगे इस दुनिया से ,नहीं कुछ साथ जाएगा ,
रहेंगे हाथ खाली ,सब  यहीं पर छूट जाता है

घोटू 
बुढ़ापे में मज़ा ले लें

अगर आये परेशानी ,तो हंस झेले बुढ़ापे में
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें ,बुढ़ापे में

लचकती चाल तुम्हारी ,कमर के दर्द के कारण ,
चलो इठलाती तुमको मैं ,लचकती कामिनी बोलूं
बदन थोड़ा भरा सा है ,है गदराया मोटापे से ,
चलो अल्हड सी मस्ती में ,तुम्हे गजगामिनी  बोलूं
मेरा भी हाल क्या कम है ,बुढ़ापे का हूँ मैं मारा ,
बची ना देह में फुर्ती ,जो बैठूं ,उठ नहीं  पाता
अधिक है खून  शक्कर ,बड़ा रहता है ,ब्लडप्रेशर ,
फूलने लगती है साँसें ,नहीं ज्यादा  चला जाता
ताश का खेल ,अच्छा है ,चलो खेलें  बुढ़ापे मे
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें बुढ़ापे में

तुम्हारी आँख पर चश्मा हमारी आँख पर चश्मा
चलो चश्मे के अंदर से ,मिलाएं बैठ कर आँखें
है पीड़ा मेरे पैरों में ,दबा दो तुम इन्हे थोड़ा ,
खुजा दूँ पीठ तुम्हारी , नरम से गाल सहला के
तुम्हारे काम मैं आऊं ,करो तुम भी मेरी सेवा ,
बढे नाखून पैरों के ,एक दूजे के हम काटें
बनाऊं चाय मैं और तुम ,पकोड़े तल के ले आओ ,
ले सुख भरपूर ,करदें दूर ,हम जीवन के सन्नाटे
यूं ही सुख एक दूजे को ,चलो दे लें बुढ़ापे में
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें बुढ़ापे में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
विवाह की वषगांठ पर पत्नी से

मीते !तुम संग बरसों बीते
लगे बात कल की जब थामे ,हाथ रचे मेहँदी ते
तुमने हंस हंस,अपनों सरवस,प्रेम लुटा मन जीते
मधुर,सरस,मदभरे बरस कुछ,तो कुछ तीते तीते
जब से तुम आई जीवन में ,समय कट्यो  मस्ती ते
जो बाँध्यो  ,प्रेमपाश में ,बंदी हूँ तब ही ते
तुम ही मेरी ,राधा ,रुक्मण ,और तुम्ही हो सीते
पर 'घोटू ' की प्यास बुझी ना ,रोज अधर रस पीते

घोटू
बुहान के मेहमान से

ओ बुहान के मेहमान तुम कब जाओगे
देखो भाग जाओ वरना तुम पछताओगे
 
अतिथि का सत्कार हमारी परम्परा है ,
लेकिन इसने परेशानियां ,दर्द दिया है
इसके चलते ही मुगलों और अंग्रेजों ने ,
हमको लूटा मारा,हम पर राज किया है
ये सच है हम मेहमानो का स्वागत करते ,
उनकी सेवा आदर  में दिन रात लगाते
लेकिन अतिथि की भी कुछ मर्यादा होती ,
परेशान जो करता ,उसको लात लगाते
तुम अतिथि ना ,घर में घुसे ,आतयायी हो ,
सता रहे हो ,हम पर करके जबरजस्तियां
ऐसे हमलावर को है हम सीख सिखाते ,
उलटे पैर भगा दी हमने कई हस्तियां  
तुम घर में घुस ,घुसो गले में ,प्राण छीनलो
पता नहीं कब वेश बदल,किसके संगआओ
हमने इसीलिये सबसे दो गज की दूरी ,
बना रखी है ताक़ि हम तक पहुँच न पाओ
कर रख्खे है द्वार बंद मुख के भी हमने ,
ताला लगा लिया है मुंह पर मास्क पहन कर
काम धाम कर बंद लोग  घर  में है बैठे ,
ताकि तुम चोरी से घुसो न घर के अंदर
है सुनसान बज़ार ,देख सन्नाटा लौटो ,
 तुम्हे भगाने की करली है सब तैयारी
भागो वरना सेनेटाइजर ,मार मार कर ,
हालत बहुत बुरी हम देंगे बना तुम्हारी
देखो मान जाओ अब भी और भारत छोडो ,
 मोदी के मारे ,तुम सांस न ले पाओगे
बहुत हो गया, सीधे सच्चे ये बतलादो ,
कब छोड़ोगे पिंड ,पीठ कब दिखलाओगे

वादा करो कि वापस लौट नहीं आओगे
 ओ बुहान के मेहमान ,तुम कब आओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


 
बुहान के मेहमान से

ओ बुहान के मेहमान तुम कब जाओगे
वादा करो कि वापस लौट नहीं आओगे

अतिथि का सत्कार हमारी परम्परा है ,
लेकिन इसने परेशानियां ,दर्द दिया है
इसके चलते ही मुगलों और अंग्रेजों ने ,
हमको लूटा मारा,हम पर राज किया है
ये सच है हम मेहमानो का स्वागत करते ,
उनकी सेवा आदर  में दिन रात लगाते
लेकिन अतिथि की भी कुछ मर्यादा होती ,
परेशान जो करता ,उसको लात लगाते
तुम अतिथि ना ,घर में घुसे ,आतयायी हो ,
सता रहे हो ,हम पर करके जबरजस्तियां
ऐसे हमलावर को है हम सीख सिखाते ,
उलटे पैर भगा दी हमने कई हस्तियां  
तुम घर में घुस ,घुसो गले में ,प्राण छीनलो
पता नहीं कब वेश बदल,किसके संगआओ
हमने इसीलिये सबसे दो गज की दूरी ,
बना रखी है ताक़ि हम तक पहुँच न पाओ
कर रख्खे है द्वार बंद मुख के भी हमने ,
ताला लगा लिया है मुंह पर मास्क पहन कर
काम धाम कर बंद लोग  घर  में है बैठे ,
ताकि तुम चोरी से घुसो न घर के अंदर
है सुनसान बज़ार ,देख सन्नाटा लौटो ,
 तुम्हे भगाने की करली है सब तैयारी
भागो वरना सेनेटाइजर ,मार मार कर ,
हालत बहुत बुरी हम देंगे बना तुम्हारी
देखो मान जाओ अब भी और भारत छोडो ,
 मोदी के मारे ,तुम सांस न ले पाओगे
बहुत हो गया, सीधे सच्चे ये बतलादो ,
कब छोड़ोगे पिंड ,पीठ कब दिखलाओगे
भाग जाओ तुम जल्दी वरना पछताओगे
 ओ बुहान के मेहमान ,तुम कब आओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

Tuesday, April 28, 2020

कोरोना -एक पद

माई री मोहे ,बहुत सतायो कोरोना
मौ से कहत रहो घर माही ,बाहर घूमो फिरो ना
मुंह पर पट्टी बाँध सभी से ,गज भर दूर रहो ना
बार बार साबुन से अपने ,हाथ पड़े अब   धोना
मुख से छीनी ,गरम जलेबी ,अरु रबड़ी का दोना
काम धाम की हो गयी छुट्टी ,दिनभर केवल सोना
आलस के बस फूल गयो अब तन का कोना कोना
ग्वाल बाल सब कंवारे बिचारे ,ना शादी नहीं गौना
कह 'घोटू 'सब तंग हो गये ,अब तो मुक्ति दो ना

घोटू  
 
छुट्टी ही छुट्टी

तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
तब तक ,जब तक ना हो जाये , तुम्हारी  दुनिया से कुट्टी

जब करते काम तरसते है हम ,एक सन्डे की छुट्टी खातिर
उस दिन आराम ,मौज मस्ती ,परिवार संग रहना हिलमिल
यदि लम्बी छुट्टी मिल जाती ,मन बाग़ बाग़ हो जाता था
तब ऐसा लगता ,सोने में जैसे सुहाग  मिल जाता था
मिलती थी 'अर्नलीव 'लेकिन 'इनकैश 'कराते ,लालच वश
यह सोच ,रिटारमेंट बाद ,जी भर लेंगे ,छुट्टी का रस
 हो जाते  किन्तु  रिटायर जब  ,दुनिया लगती ,लुट्टी लुट्टी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

जब मिला रिटायरमेंट हमें ,कुछ  दिन  बीबी ने बात सुनी
अब छोटी छोटी बातों पर ,हो जाती अक्सर कहा सुनी
वो बना बहाना कोई भी ,अब हमें 'अवोइड '  करती है
उनके इस बेगानेपन पर ,इस दिल पर छुरियां चलती है
हो गए आलसी हम थोड़े ,आदत बन गया निठल्लापन
ऐसा लगता है स्वादहीन ,रसहीन हो गया ये जीवन
कोई भी रखता ,ख्याल नहीं ,क्यों मन को तसल्ली दे झुन्ठी
तुम साठ  साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

दिन भर घर में बैठे  रहते ,करना धरना कुछ काम नहीं
कुछ समय ठीक ,पर पूरे दिन ,हम कर सकते ,आराम नहीं
माना कि हुआ है तन ढीला लेकिन दिमाग फुर्तीला है
चलते फिरते सब हाथ  पैर ,और मन अब भी रंगीला है
पच्चीस प्रतिशत से ज्यादा ,जीवन जीना अब भी बाकी
तो इतना तो हक़ बनता है ,कर सकते कुछ ताका झांकी
है अब भी कीमत लाखों की ,जब तक हो बंद पड़ी मुठ्ठी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
एक सवैया -हिरण हो गया

 नैन बसी सुन्दर छवि रमणी की ,हिरणी से नैन ,रूप मतवारो
 हिरन हुई सब चाह ,लोग जब ,समझायो भेद हिरण को सारो
स्वरण हिरण पीछे गए राम जी ,इहाँ रावण  सीता हर  डारो
काले हिरण की चाह  के कारण ,जेल गयो ,सलमान  बिचारो

घोटू 
कोरोना पर घोटू का एक पद

माई री मोहे बहुत सतायो कोरोना
मोसे कहत ,रहो घर में ही ,बाहर घूमो फिरो ना
 मुख से छीनी ,गरम जलेबी अरु रबड़ी का दोना
कामधाम तज ,पड़े निठल्ले ,दिन भर घर में सोना
आलस के वश ,फूल गया है ,तन का कोना कोना
परेशान  सब  ,कंवारे बेचारे ,ना शादी ना गौना
मुख पर पट्टी ,गज भर दूरी ,बस रोना  ही रोना
कह 'घोटू' कवि ,तंग हुए सब ,अब तो मुक्ति दो ना

घोटू 

Monday, April 27, 2020

वृद्ध चालीसा

दोहा
हे ज्ञानी और महामना ,तुम अनुभव की खान
देव तुल्य तुम हो पुरुष ,कोटिशः तुम्हे प्रणाम
वृद्ध नहीं समृद्ध तुम , उमर  साठ से पार
कृपादृष्टी बरसाइये ,कर हम पर उपकार

चौपाई
जय जय देव बुजुर्ग हमारे
तुम्ही विरासत दुर्ग हमारे
बरसे सब पर प्यार तुम्हारा
सर पर आशीर्वाद  तुम्हारा  
पग पग पर हो ,सच्चे  शिक्षक
मन से हो  सबके शुभ चिंतक
करते फ़िकर सभी घरभर की
रखो खबर ,अन्दर  बाहर की
 सिखलाते हो  ,पाठ ज्ञान का
शुभ स्वास्थ्य और खान पान का
परम्पराओं के रखवाले
सब रीति रिवाज संभाले
सुना पुराने किस्से ,गाथा
गर्वित ऊंचा होता माथा
आती चमक बुझी आँखों में
तुमसे कोई नहीं लाखों में
अनुभव की जब होती वृद्धि
आत्मा में आ जाती  शुद्धि
साठ  साल इसमें लग जाते
तब जाकर तुम वृद्ध कहाते
कर देती सरकार रिटायर
तुम्हे बैठना पड़ता है घर
दिन भर पेपर करते चाटा
गलती पर ,बच्चों को डांटा
टीवी से  बस   चिपके रहते
बुरा न कभी ,किसी से कहते
ढला हुआ तन ,मन में  गर्मी
छूट न पाती ,पर  बेशरमी
आँखे फाड़ करो तुम देखा
रूप षोडसी ,सुंदरियों का
ये आदत ,अब भी है बाकी
करते रहते ,ताका झांकी
बना  बहाने ,करते बातें
इसी तरह बस मन बहलाते
यूं तो बिगड़ा ,साज तुम्हारा
है आशिक़ मिज़ाज  तुम्हारा
हो कितना ही बूढा बन्दर
नहीं गुलाटी वो भूले पर
ढीले है पुरजे सब तन के
फिर भी रहते हो बनठन के
बालों पर ख़िज़ाब लगाते
याद जवानी की फिर लाते
दिन दिन सेहत बिगड़ रही है
तुमको  इसका ख्याल नहीं है
है मधुमेह ,बढ़ रही ,शक्कर
पर मिठाइयां ,खाते  जी भर
और स्वाद के मारे थोड़े
खाओ समोसे ,चाट पकोड़े
बड़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
फ़िक्र नहीं करते रत्ती भर  
बस करते ,जो आये मन में
चाह पूर्ण हो सब जीवन में
पास डॉक्टरों  के भी जाते
दवा,गोलियां रहते  खाते
यही सोच कर ,लेते टॉनिक
जीवन हो लम्बा ,जाऊं टिक
इतनी जीर्ण शीर्ण है काया
नहीं छूटती ,तुमसे माया
कितनी बार हृदय है टूटा
परिवार का मोह न छूटा
देता ध्यान न कोई तुम पर
तुमको सबकी चिंता है पर
त्योंहारों में घर के सारे
छूते है आ चरण तुम्हारे
बस तुम इससे खुश हो जाते
लगते प्यारे ,रिश्ते नाते
लेकिन तुम्हे  जान कर बूढा
लोग समझते ,घर का कूड़ा
तन कमजोर  न मन कमजोरी
विनती इसीलिये कर जोरी
उलझो मत परिवार मोह में
सिमटे मत तुम रहो खोह में
सबकी  चिंता  करना छोडो
मोह माया का ,पिंजरा तोड़ो
अब भी समय,जाग तुम जाओ
प्रभु चरणों में ध्यान लगाओ
भजन करो तुम सच्चे मन से
हरि सुमरन  में लगो लगन से
इस जीवन से तर जाओगे
वरना यूं ही मर जाओगे

दोहा
चालीसा यह वृद्ध का ,कह घोटू समझाय
मोह तजो प्रभु को भजो ,जन्म सफल हो जाय

अथः श्री वृद्ध चालीसा सम्पूर्ण
कोरोना -घोटू के चार छक्के

कोरोना के कोप से ,बहुत दुखी इंसान
ढूंढ रहा सारा जगत ,इसका कोई निदान
इसका कोई  निदान ,बड़ी घातक बिमारी
त्राहि त्राहि कर रही ,आज दुनिया है सारी
आता है तूफ़ान ,लोग घर घुस कर रहते
घर रह बचो कोरोना से ,'घोटू 'कवि कहते

रामायण  में जिस तरह ,छिप कर बैठे राम
एक बाण में कर दिया ,बाली  काम तमाम
बाली काम तमाम ,शत्रु का बल पहचानो
नहीं सामने आओ ,अगर 'घोटू 'की मानो
मत बाहर घर से निकलो है तुम्हे मनाही
नहीं  चाहते जन जीवन की अगर तबाही

परेशान सब लोग है ,बंद है कारोबार
सूनी सब सड़कें पड़ी ,है वीरान बज़ार
है वीरान बज़ार,दिहाड़ी करने वाले
सब मजदूर बेकार ,पड़े खाने के लाले
'घोटू 'कितने सेवाभावी सामने  आये
जिनने खाना और राशन ,सबमे बंटवाये

बड़े बड़े सब डॉक्टर ,नर्स और स्टाफ
बीमारों की कर रहे ,है सेवा दिन रात
है सेवा दिन रात ,पोलिस के बंदे सारे
रहे व्यवस्था क़ानून की ये सभी संभाले
सब सफाई कर्मी ने भी कर्तव्य निभाया
डटे रहे जी जान ,कोरोना फैल न पाया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Sunday, April 26, 2020

सवैये कोरोना के

जीवन को सब रस ,चूस लियो डस डस ,वाइरस एक बुहान से आयो
सारे जगत को रख्यो गफलत में ,चीन ने काहू को ना बतलायो
फैली महामारी जब दुनिया में सारी तो लाखों के प्राणो पे संकट छायो
ऐसे कोरोना से लड़ने को मोदी ने ,सबको ही घर में बिठाय छुपायो

आवत नहीं बाज,जालसाज,दगाबाज, परेशान आज सब ,चीनियों की चाल से    
फैला दियो वाइरस ,भारी सी बिमारी वालो ,दुनिया के लोग सब ,हुए बदहाल से
थोड़े से जमाती ,खुरापाती ,उत्पाती बने ,फैलादी बिमारी खुद ,रहे न संभाल से
मोदी को कमाल देखो हार गयो  महाकाल ,महामारी फैल नहीं पायी देखभाल से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
कोरोना के कर्मवीरों  के प्रति

ओ कोरोना केकर्मवीर,तुमको मेरा ,शतशत प्रणाम
तुम्हारी मेहनत ,सेवा ने ,कोरोना पर कसदी  लगाम  

थी बड़ी विकट ही परिस्तिथि एकदम अन्जान बिमारी थी
सब साधन थे उपलब्ध नहीं ,और परेशानियां  भारी थी
उस पर डर संकम्रण का था ,पर तुम सेवा में लगे रहे
घर बार छोड़ कितनी रातें ,तुम ड्यूटी पर रह ,जगे रहे
यह सोच कोरोना घातक पर ,पीछे ना कदम हटाया है
कितनो को बचा मृत्यु मुख से ,तुमने कर्तव्य निभाया है
डॉक्टर हो या नर्सिंग स्टाफ ,या फिर सेवा कर्मी सारे
 पोलिस के अफसर ,दारोगा ,क़ानून के बन कर रखवाले
ये  वर्दी वाले  देवदूत ,मन में सेवा संकल्प लिये
सब है हक़दार प्रशंसा के ,दिन रात जिन्होंने एक किये
तुम हो विशिष्ट ,कर्तव्यनिष्ट ,हम तुम्हारे आभारी है
तुम्हारी त्याग तपस्या के ,बल पर कोरोना हारी है
है ऋणी तुम्हारे हम सब ही  ,ना भूलेगें  ये अहसान
ओ कोरोना के कर्मवीर ,मेरा तुमको शत शत प्रणाम
 
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '

Saturday, April 25, 2020

कोरोना की  देन

कहते हर एक बुराई के पीछे कुछ छुपी भलाई है
इस कोरोना के संकट ने ,हमको ये बात बताई है
ये सच है कि इसके कारण ,हमने दुःख बहुत उठाया है
पर आई क्षमता लड़ने की ,हमने कितना कुछ पाया है
सब रखते ख्याल सफाई का ,धोते है हाथ सलीके से
सब्जी फल जो भी लाते है ,धो खाते ,सही तरीके से
ना  भीड़  सिनेमा हालों में ,ना यूं ही विचरणा ,मालों में
आपस में आई निकटता है ,और प्यार बढ़ा घरवालों में
बचने को बोरियत से दिन भर ,कुछ महिलाओं ने ठीक किया
गूगल में रेसिपी पढ़ कर ,पकवान बनाना सीख लिया
अब  बहुत न होते  भंडारे ,मातारानी के जगराते
शादी सगाई की भीड़ घटी ,ना लम्बी चौड़ी बारातें  
ना नेताओं की वो रैली ,ना स्नेह मिलन के सम्मेलन
लग गयी लगाम ,नहीं होते ,अब भीड़ भाड़ वाले फंक्शन
कितना ज्यादा सुख मिलता था वो अपनी शान दिखाने में
शोशेबाजी ,गाना ,डीजे ,पकवान पचीसों खिलाने  में
अपनानी पड़ी सादगी है ,इस कीट कोरोना के कारण
सब कोशिश करते ,ना खाएं ,बाजारों से आया भोजन
इतना परिवर्तन आ ही गया है लोगो के व्यवहारों में
रखते सामजिक दूरी बना ,हर उत्सव और त्योहारों में
जरुरतमंदो को दान दिया ,लोगों ने खाना,राशन का
मानवता मन में जगा गया ,यह कठिन पर्व अनुशसन का
जब भी आता बदलाव कभी होती है सबको कठिनाई
चालीस दिन करी प्रेक्टिस फिर नव जीवन पद्धिति अपनाइ
अपव्यय छूटा ,मितव्ययी हुए ,हम स्वालम्बी बन पाये
ये सच है पर हम बदल गए ,जीवन में कितने सुख आये
कुछ परेशानिया आयी मगर ,हो गए आत्मनिर्भर है हम
निज सेहत के प्रति जागरूक ,अब फुर्तीले तत्पर है हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
आओ तुम्हे इंसान बना दे

मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें
वाधाओं  से लड़ना सिखला , जीवनपथ आसान बना दें

पढ़ा लिखा अच्छी शिक्षा दे ,तुम्हारा अज्ञान मिटा दे
भाईचारा ,प्यार सिखा कर , नफरत की दीवार हटा दें
मदद करो जरुरतमंदों की ,सद्भावों की खान बना दें
मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें

प्राणायाम,श्वसन क्रियाऔर तुमको थोड़ा ध्यान सिखा दें
अपना लक्ष्य प्राप्त करलो तुम ,तुमको ऐसी राह दिखा दें
सदाचार व्यवहार सिखा कर ,नम्र और गुणवान बना दें
मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें

प्रगति पथ पर रहो अग्रसर ,ऐसा मन में भाव जगा दें
लक्ष्य प्राप्ति की लगन लगी हो ,मन में वो उत्साह जगा दे
देशप्रेम की ज्योति प्रज्वलित करें,वतन की शान बना दें
मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

Friday, April 24, 2020

  कोरोना - तीन   सवैये
  १
दीनी मचाई  त्राहित्राहि सारे जग माही ,चीन तूने 'चीट 'कियो कछु ऐसो
फैल रह्यो दिन  दूनो दानव सो पग पसार ,चीन तूने कीट दियो कछु  ऐसो  
मन है उदास ,कोई आये नहीं पास, त्रास , वाइरस ढीठ दियो  कछु  ऐसो
 आई जानी मानी इकोनॉमी पे सुनामी जैसे ,चीन तूने पीट दियो कछु ऐसो


ठीक से भी सांस नहीं,आवत जावत रही ,मुंह पे  ऐसो कपडा को बंधन अड्यो है
 आफत ये दुहरी है ,आवत नहीं महरी है ,काम घर को सब खुद करनो  पड्यो है
घर पर ही रुको, नहीं बाहर  निकल सको ,सड़क  पे  डंडा लिए ,दरोगा   खड्यो  है
दिन में भी सोनो ,दुखी होके चैन खोनो  ,ऐसो कारण कोरोना के  रोनो पड्यो  है

हुई जबसे तालाबंदी ,लगी सभी पे पाबंदी हालत हुई चिन्दी चिन्दी अब जल्दी ना सुधरनी
नाई नहीं बड़े केश ,धोबी नहीं बिगड़ा भेष ,रहे मन में कलेश,चीन ऐसी तेरी करनी
 घर के जो राजा, करे आज बासन मांजा ,काम करो सारे साजा ,खुश रहे तभी घरनी
ऐसी आई मजबूरी ,बना रखो सबसे दूरी ,ऐसा करना है जरूरी ,ये है कोरोना को हरनी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '









 

कोरोना

न पड़ता गले  जो ,कदाचित कोरोना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

चालीस दिनों की ,हुई घर में बंदी
बाहर न निकलो ,लगी है पाबंदी
अपने मिलने वालो से कहदो मनाकर
आपस में दूरी ,रखें सब   बनाकर
हरेक घंटे में हाथ साबुन से धोना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

हुआ खुल के साँसे भी लेना मनाही
मुंह पर सभी ने है ,पट्टी लगाईं
करो काम खुद अब ,महरी न नौकर
पड़ा सबके के पीछे ,है ये हाथ धोकर
बोअर हो गए ,रात  दिन सोना सोना
नहीं  इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

नहीं चाट मिलती ,समोसे ,मिठाई
कहीं दाल रोटी ही  ,सदा जाये खाई
है वीरान सारे ,गली और मोहल्ले
रहो बैठे दिनभर तुम घर में निठल्ले
मोटापे से फूला ,तन का कोना कोना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

चले रेल ना बस ,है बंद आना जाना
नहीं चल रहा है कोई कारखाना
थे करते दिहाड़ी ,जो मजदूर सारे
भगे गाँव घर को ,मुसीबत के मारे
सुधरेगी कब तक ,ये हालत कहो ना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

लॉक डाउन उठने के बाद

प्रकृती के संग हमने जो खिलवाड़ करी है
बदले में सहना  पड़  रही मार दुहरी  है
भोग रहे हम अपनी करनी ,कर्मो का फल
तरह तरह के रोग ,बिमारी  आते  पल पल
चक्रावत  तूफ़ान कभी भूकम्प , सुनामी
तरह तरह की विपदायें है आनी  जानी
प्रदूषणों  में हमने जीना सीख लिया है
दूषित और गंदा जल  पीना सीख लिया है
चिकनगुनिया की विभीषिका हमने झेली
एच वन एन वन फ्लू बिमारी अब भी फैली
कैंसर ,हृदयरोग ,ब्लूडप्रेशर पड़े पुराने
अब आ गयी कोरोना व्याधि हमें सताने
इससे बचने ,इतने दिन तक करी कवायत
इसे भगाने को डाली कुछ अच्छी आदत
धोना हाथ ,सफाई रखना ,मुंह पर पट्टी
घर का खाना ,होटल के खाने से कुट्टी  
भीड़भाड़ से रखी बना कर हमने  दूरी
चाहे इसे विवशता बोलो या मजबूरी  
अब भी सामजिक दूरी की आवश्यकता
कोरोना से दूर रखेगी हमें सजगता
अगर सोचते जब लॉक डाउन उठ जाएगा
सब कुछ नॉर्मल पहले जैसा हो जाएगा
तो मित्रों यह सबसे बड़ी गलत फहमी है
बहुत दिनों तक यह विपदा हमको सहनी है  
इसीलिये यदि  पहले जैसा जीना  जीवन
कोरोना से लड़े  ,सावधानी रख हर क्षण
कुछ दिन भुगतो ,फिर एक दिन ऐसा आएगा
इसका भी हमको निदान मिल ही जाएगा
ज्यादा भय और चिंता मत निज मन में पालो
कोरोना के संग जीने की आदत डालो
इस बंदी के बीच बंद था सब उत्पादन
दुकाने और गमन आगमन के सब साधन
रिश्ता चालक ,रोज दिहाड़ी करने वाले
परेशान हो गए  ,पड़े खाने के लाले
घबरा कर सबने गाँवों को किया पलायन
अस्त व्यस्त हो गया कई लोगों का जीवन
आने वाला वक़्त कठिन है ,मुश्किलों भरा
आज देश की अर्थव्यवस्था  गयी चरमरा
वक़्त लगेगा ,वापस पटरी पर लाने में
महीनो गुजर जाएंगे हमे सम्भल पाने में
अर्थव्यवस्था को सुधारना ,आगे बढ़ना
महामारी से कोरोना की भी है लड़ना
मित्रों  कस लो  कमर ,और तैयार रहो तुम
भारत माता से बस  करते प्यार रहो तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
  कोरोना - दो  सवैये
  १
दुनिया में त्राहि त्राहि  मचाई है ,चीन ने 'चीट 'कियो कुछ ऐसो
फेल रह्यो  दिन  दिन  दूनो  यह ,चीन ने कीट दियो कुछ ऐसो  
दे रहयो त्रास, न आने दे पास ,यह वाइरस ढीठ दियो कुछ ऐसो
दुनिया की अर्थव्यवस्था बिगाड़ी ,चीन ने पीट दियो कुछ ऐसो


ठीक से सांस भी न आवत जावत ,मुंह पे  बंध्यो एक मास्क जड्यो है
न आवत  महरी ,है आफत दुहरी ,काम सभी खुद करनो  पड्यो है
निकल  सको नहीं बाहर घर से , लेकर के डंडा ,दरोगा   खड्यो  है
दिन भर घर में ही सोनो पड्यो है ,ऐसो कोरोना को रोनो पड्यो  है

मदन मोहन बहती 'घोटू '

Wednesday, April 22, 2020

कोरोना ने क्या सिखा दिया

कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
चालीस दिन तक,डर के मारे,घर के अंदर ही टिका दिया

पहले हफ्ते में कम से कम ,एक दिन तो होटल जाते थे
वह खाना मिर्च मसालों का ,चटकारे ले ले  खाते  थे
भरते होटल का मोटा बिल ,चाहे अजीर्ण ही हो जाता  
लॉक डाउन में सब बंद हुए ,अब छूटा होटल से नाता
पर जब खाये रोज गरम ,फुल्के पत्नी के हाथ  बने
और दाल हींग तड़के वाली ,सब्जी चटनी भी साथ बने
फिर प्यार भरा वो मनुहार ,सच खाने में रस आया है
है  पेट ठीक ,खाने में भी ,अब हमने  हाथ बटाया है
कैसे बनते खिचड़ी ,पुलाव ,और कैसे दलिया,सिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया

ये सच है संग संग रहने से ,आपस में प्यार पनपता है
कुछ तू तू मैं मैं भी होती ,पर रिश्ता गहरा बनता  है ,
झाड़ू  पोंछा ,डस्टिंग ,बर्तन ,हर घर की है आवश्यकता
किसने सोचा बिन महरी कामवालियों के घर चल सकता
लेकिन जब मुश्किल आती है ,एक जुट हो जाते घरवाले
आपस में काम बाँट कर के ,चुटकी में निपटाते  सारे
यह दौर कठिन था शुरु शुरु तकलीफ पड़ी सबको सहना
लेकिन अब हमने सीख लिया ,किस तरह आत्मनिर्भर रहना
मेहरी की किचकिच  बंद हुई ,आइना उसको दिखा दिया
कोरोना तुम्हारी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया

ना बेमतलब का खर्चा करना ,ना व्यर्थ घूमना  मालों में
सबसे कम खर्च हुआ इन दिन ,पिछले कितने ही सालों में
हम सीख गए झाड़ू पोंछा ,बरतन सफाई ,कपडे धोना
थोड़े ही दिन में चमक गया ,है अब घर का कोना कोना
अब शुद्ध हवा में सांस ,आसमां नीला ,दिखते है  तारे
है मिलना जुलना बंद ,फोन पर हालचाल मिलते सारे
दारू गुटखा  तम्बाखु की,आदत से भी मुक्ति पायी
कोरोना से भी बचे रहे ,जीवन में नियमितता  आयी
कर्तव्यपरायण पतियों में ,है नाम हमारा लिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया

मेहमान नवाजी बंद हुई ,उन पर खर्चों की बचत हुई
गाड़ी ,स्कूटर बंद पड़े , ना पेट्रोल की खपत हुई
ना गरम समोसे मिलते है और गरम जलेबी भी अलभ्य
अब हाथ धो रहे बार बार ,रहते स्वस्थ और अधिक सभ्य
चुप रहते मुख पर मास्क  बाँध ,छुट्टी अब सारे लफड़ो की
दफ्तर ना  जाते ,जरूरत ना ,अब प्रेस किये सब कपड़ो की
दिन यूं ही गुजारा करते है ,हम कुर्ते और पाजामे में
या बरमूडा ,टी शर्ट, निकर,खर्चा न प्रेस करवाने में
मितव्ययी हो गए हम इतने ,खर्चा आधा कर दिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Tuesday, April 21, 2020

कोरोना ने क्या सिखा दिया

कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
चालीस दिन तक,डर के मारे,घर के अंदर ही टिका दिया

पहले हफ्ते में कम से कम ,एक दिन तो होटल जाते थे
वह खाना मिर्च मसालों का ,चटकारे ले ले  खाते  थे
भरते होटल का मोटा बिल ,चाहे अजीर्ण ही हो जाता  
लॉक डाउन में सब बंद हुए ,अब छूटा होटल से नाता
पर जब खाये रोज गरम ,फुल्के पत्नी के हाथ  बने
और दाल हींग तड़के वाली ,सब्जी चटनी भी साथ बने
फिर प्यार भरा वो मनुहार ,सच खाने में रस आया है
है  पेट ठीक ,खाने में भी ,अब हमने  हाथ बटाया है
कैसे बनते खिचड़ी ,पुलाव ,और कैसे दलिया,सिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया

ये सच है संग संग रहने से ,आपस में प्यार पनपता है
कुछ तू तू मैं मैं भी होती ,पर रिश्ता गहरा बनता  है ,
झाड़ू  पोंछा ,डस्टिंग ,बर्तन ,हर घर की है आवश्यकता
किसने सोचा बिन महरी कामवालियों के घर चल सकता
लेकिन जब मुश्किल आती है ,एक जुट हो जाते घरवाले
आपस में काम बाँट कर के ,चुटकी में निपटाते  सारे
यह दौर कठिन था शुरु शुरु तकलीफ पड़ी सबको सहना
लेकिन अब हमने सीख लिया ,किस तरह आत्मनिर्भर रहना
मेहरी की किचकिच  बंद हुई ,आइना उसको दिखा दिया
कोरोना तुम्हारी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया

ना बेमतलब का खर्चा करना ,ना व्यर्थ घूमना  मालों में
सबसे कम खर्च हुआ इन दिन ,पिछले कितने ही सालों में
हम सीख गए झाड़ू पोंछा ,बरतन सफाई ,कपडे धोना
थोड़े ही दिन में चमक गया ,है अब घर का कोना कोना
अब शुद्ध हवा में सांस ,आसमां नीला ,दिखते है  तारे
है मिलना जुलना बंद ,फोन पर हालचाल मिलते सारे
दारू गुटखा  तम्बाखु की,आदत से भी मुक्ति पायी
कोरोना से भी बचे रहे ,जीवन में नियमितता  आयी
कर्तव्यपरायण पतियों में ,है नाम हमारा लिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

   
 

 

Monday, April 20, 2020

हाय रे! इंसान की मजबूरियां

चाहते है वो हमें,विश्वास है
इसलिए ही नहीं आते पास है
प्यार करते ,तभी रहते दूर है
डर कोरोना का  बना नासूर है
जान कर के बनाई है दूरिया
हाय रे ! इंसान की मजबूरियां

गुलाबी सुन्दर ,रसीले वो अधर
आजकल आते नहीं हमको नज़र
बाँध मुंह पर 'मास्क 'रखते है छुपा
हुए चुंबन ,मुस्कराहट ,बेवफा  
लग गयी है प्यार पर पाबंदियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरिया  

इस तरह वो  हो गए मजबूर से
आँख बस केवल मिलाते ,दूर से
रखते हमसे पांच फिट का फासला
हाथ छूने से भी  है उनको गिला
तड़फाते है खनका के बस चूड़ियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरिया

प्यार को रहता तरसता ये जिगर
पास बहती नदी ,हम प्यासे मगर
सामने मिठाइयों का थाल है
खा  न पाते ,बुरा इतना हाल है
दिल पे चलती रोज छप्पन छुरियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरियां  

तड़फता है रोज ये दिल तिलमिला
कितने दिन तक चलेगा ये सिलसिला
सितम कितने दिन ये झेला जाएगा
अरमानो से ,दिल के खेला जाएगा
कब मिलेगी, प्यार की मंजूरियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरियां  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मुस्कराना सीख लो

ख़ुशी चेहरे पर बहुत आ जायेगी
जिंदगी में  बहारें  छा जायेगी
मिलो ,सबका प्यार पाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना  सीखलो

दिल में जब इंसानियत जग जायेगी
मन की सब मनहूसियत भग जाएगी
बस किसी के काम आना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

किसी की मुश्किल में उसका साथ दो
सहारे को बढ़ा अपना हाथ दो
गिरते को ,ऊपर उठाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

किसी का गम अगर कुछ कम कर सको
किसी के जीवन में खुशिया भर सको
फर्ज  बस  अपना निभाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीख लो

बात सुन कर किसी की न भौंहें तने
ना किसी से मिलो और रहो अनमने
खुश रहो ,बांछें खिलाना सीख लो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी
जिंदगी फिर मुश्किलों से ही कटी
ठीक से गाडी चलाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

नहीं जलना ,जलन से  और डाह से
जलो बन कर दीप तुम उत्साह से
तम हटाकर ,जगमगाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
अदृश्य

वो चलती है ,वो बहती है
वो आसपास ही रहती है
है गर्म कभी तो ठंडी है
सुखदायक कभी प्रचंडी है
होती  सबकी जीवनदाती
पर हमको नज़र नहीं आती
जो हम सबकी जीवनरेखा
हमने न हवा को पर देखा
हम खट्टा मीठा खाते है
खाने का मज़ा उठाते है
सबकी जिव्हा और मनभाया
तुमको क्या स्वाद नज़र आया
सब शोर मचाते ढोल सुने
क्या ख़ामोशी के बोल सुने
क्या लड़ता देखा आँखों को
क्या सुना कभी सन्नाटों को
अंधियारे में कुछ ना दिखता
पर अँधियारा  तुमको दिखता
ना चाह दिखे और चाव नहीं
दिखता स्वभाव और भाव नहीं
ऐसी कितनी ही है बातें
जो होती देख न हम पाते
होती अदृश्य ,पर क्षण क्षण में
वो साथ निभाती  जीवन  में

घोटू 
शादी के बाद-चार चित्र  
१ 
शादी के बाद ,
प्यार का आहार  पाकर 
जब काया छरहरी 
होती है हरी भरी 
फूलती फलती है 
तो ,तब बड़ी अखरती है 
जब सगाई की अंगूठी ,
ऊँगली में आने से ,इंकार करती है 
शादी के पहले ,
स्वच्छ्न्द उड़ने वाले पंछी,
शादी के बाद ,जब बनाते है घोंसले 
तो जिम्मेदारी के बोझ से ,
पस्त  हो जाते है  उनके होंसले 
वो भूल जाते है सारे चोंचले 
एक नाजुक सी दुल्हन 
जब अपने फूलों से कोमल हाथों से ,
 सानती  है आटा ,
या मांजती है बरतन
अपना सारा हुस्न और नज़ाकत भूल , 
बन जाती है पूरी गृहस्थन 
गरम गरम तवे पर  ,
 रोटी सेकते सेकते, 
जब गलती से ,नाजुक उँगलियाँ,
तवे से चिपक जाती है 
तो मम्मीजी की ,बड़ी याद आती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, April 19, 2020

मुस्कराना सीख लो

ख़ुशी चेहरे पर बहुत आ जायेगी
जिंदगी में  बहारें  छा जायेगी
मिलो ,सबका प्यार पाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना  सीखलो

दिल में जब इंसानियत जग जायेगी
मन की सब मनहूसियत भाग जाएगी
बस किसी के काम आना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

किसी की मुश्किल में उसका साथ दो
सहारे को बढ़ा अपना हाथ दो
गिरते को ,ऊपर उठाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

किसी का गम अगर कुछ कम कर सको
किसी के जीवन में खुशिया भर सको
फर्ज  बस  अपना निभाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीख लो

सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी
जिंदगी फिर मुश्किलों से ही कटी
ठीक से गाडी चलाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

नहीं जलना ,जलन से  और डाह से
जलो बन कर दीप तुम उत्साह से
तम हटाकर ,जगमगाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
हम कैसे समय बिताते है

चालिस दिन के लॉकडाउन में ,हम कैसे समय बिताते है
कुछ घूँट गमो के पीते है ,कुछ पत्नी की  डाटें खाते है

इस कोरोना की दहशत से ,सबकी सिट्टी पिट्टी  गुम है
हर मुंह पर पट्टी पड़ी हुई ,हर चेहरा थोड़ा गुमसुम  है
यह चालीस दिन की घरबंदी ,लायी है इतना परिवर्तन
जो हाथ किया करते दस्तखत ,वो हाथ मांजते अब बर्तन
सड़कों पर सन्नाटा छाया ,बंद आना जाना ,दुकाने
तुम घर घुस  बैठो ,काम करो ,दिन में सोवो ,खूँटी ताने
हम जोर जोर खर्राटे भर ,पत्नी को जरा सताते है
चालीस दिन के लॉकडाउन में ,हम कैसे समय बिताते है

हम आलू टिक्की भूल गए ,हम चाट समोसे भूल गए
वो गरम जलेबी ,रसगुल्ले ,इडली और डोसे  भूल गए
ना 'डोमिनो 'ना 'मेकडोनाल्ड 'ना बिकानेर ,ना हल्दीराम
पत्नी के हाथों पका हुआ ,खाना कहते है सुबह शाम
सुनते भी है हम जली कटी ,और जलीकटी पड़ती खानी
और वो भी तारीफ कर वरना ,बंद हो जाता हुक्कापानी
हड़ताल न करदे बीबीजी ,इस डर से हम घबराते है
चालीस दिन के लॉक डाउन में, हम कैसे समय बिताते है  

पहले पत्नीजी मेहरी से ,डेली ही  किचकिच करती थी
पर काम छोड़ ना चली जाय ,थोड़ा सा मन में डरती थी
महरी वाला सब कामकाज ,मजबूरी में करते हम है
महरी सी किचकिच की आदत ,पत्नी में अब भी कायम है
वह रोज हमारे कामों में ,कुछ नुक़्स निकाला करती है
मालूम है घर ना छोड़ेंगे ,इसलिए न बिलकुल डरती है
अपने बिगड़े हालातों पर ,बस तरस हम खुद ही खाते है
चालीस दिन के 'लॉकडाउन 'में ,हम कैसे समय बिताते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Friday, April 17, 2020

क्या कभी आपने सोचा था

क्या कभी आपने सोचा था ,कि ऐसे दिन भी आएंगे
जब हम थक कर सोनेवाले ,सोते सोते थक जाएंगे
हफ्ते भर करते काम तभी सन्डे की छुट्टी पाते थे
करते आराम ,बाल बच्चों संग ,अपना समय बिताते थे
था प्यार उमड़ता पत्नी का ,खाना मिलता था स्पेशल
था वक़्त गुजरता मस्ती में ,दिन में भी सो लेते जी भर
मिट जाती थी सारी थकान ,हम मन में हरषा करते थे
बस इसीलिये हम सन्डे की ,छुट्टी को तरसा करते थे
और फिर ऐसे भी दिन आये ,जब कहर करोना का टूटा
मिल गयी छुट्टियां इक्कीस दिन ,पर चैन हमारा था लूटा
सब बंद  बाज़ार होटलें दफ्तर ,आना जाना बंद हुआ
नौकर चाकर , ,कामवालियां ,आने पर प्रतिबंध हुआ
अब घर का सब झाड़ू पोंछा ,और साफ़ सफाई गले पड़ी
तुम स्वयं पका ,बरतन मांजो ,होगयी मुश्किलें रोज खड़ी
सब्जी काटो ,आटा गूँधो ,और रोटी गोल बेलना फिर
थोड़े दिन तो एडजस्ट किया ,पर मुश्किल हुआ झेलना फिर
सब प्यार लुटाते जब एक दिन छुट्टी मिलती थी हफ्ते में
अब झगड़ा होता रोज रोज ,बढ़ती जाती तू तू ,मैं मैं
हर संडे अब फन डे न रहा अब पहले जैसी मौज नहीं
फरमाइश पत्नी और बच्चों की ,पूरी हो सकती रोज नहीं
है कभी कभी का मज़ा और ,है कभी कभी ही सुखदायक
इतने दिन तक तो निभा लिया ,हमने जैसे तैसे अबतक
है हमे कोरोना से लड़ना ,हर मुश्किल सर पर ले लेंगे
इक्कीस दिन तो है झेल लिया ,अब चालीस दिन भी झेलेंगे


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
कोरनवा ने हाय राम

कोरनवा ने हाय राम ,बड़ा  दुःख दीना
मियां बीबी बच्चे सबको ,घर में बंद कर दीना
झाड़ू पोंछा ,बरतन मांजो ,महरी का सुख छीना
होटल बस बाज़ार बंद सब ,मुश्किल खाना पीना
पतिदेव फरमाइश करते ,करते काम कभी ना
दहशत मारे,सब बेचारे ,ऐसा ये रोग कमीना
इक्कीस दिन तो झेल लिए अब चालीस दिन कर दीना

घोटू  
कोरोना और वनवास

हे राम तुम्हारी कथा ,व्यथा से बहुत रुला देती हमको
जिस दिन मिलना था राजपाट,उस दिन वनवास मिला तुमको
पर काश तुम्हे वनवास नहीं , होती कुछ सजा ,कैद जैसी
 चौदह वर्षों ,बंध  चारदीवारी में ,होजाती  ऐसी की तैसी
मैं खुद इस दहशत से गुजरा हूँ ,मैंने ये पीड़ा  भोगी  है
इस हालत में अच्छा खासा ,इंसां बन जाता रोगी है
कोरोना की विपदा कारण जब हुई देश की थी बंदी
चालीस दिन तक ,घर से बाहर ,ना निकलो,यह थी पाबंदी
मरघट सी शान्ति  बाज़ारों में ,ना हलचल थी ना  चहलपहल
खामोश अकेले तन्हाई में  ,रो रो कर कटता था हर पल
मैंने रह चारदीवारी में ,महसूस किया ,घुट घुट ,तिल तिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास झेलना मुश्किल

यह वनवास नहीं ,अपितु था ,सुन्दर मौका देश भ्र्मण का  
तरह तरह के लोगों के संग ,मिलना जुलना ,रहन सहन का
खुली हवा में साँसें लेना ,नदियों का निर्मल जल पीना
पंछी सा उन्मुक्त चहकना ,अपनी मन मर्जी  से जीना
ना पाबंदी ,ना डर  कोई ,लोकलाज का ,राजधर्म का
स्वविवेक से निर्णय लेना ,करना जो मन कहे ,कर्म का  
कभी बेर शबरी के खाना  ऋषि मुनियों के दर्शन पाना ,
बिन वनवास बड़ा मुश्किल था ,भक्त कोई हनुमत सा पाना
दुष्ट  अहंकारी रावण का ,कर पाए तुम नाश  राम जी
अच्छा हुआ ,केकैयी माँ ने ,दिया तुम्हे वनवास राम जी
वर्ना अगर कैद जो घर में ,रहते ,टूट टूट जाता दिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास बड़ा ही मुश्किल

याद करो परमार्थ ,पार्थ की ,थी  पुरुषार्थ भरी वह गाथा  
 राज्य हस्तिनापुर पाने को ,महाभारत का युद्ध हुआ था
पांच पांडव एक तरफ थे ,और सामने सौ सौ कौरव
कुटिल शकुनि ने ध्रुतक्रीड़ा में जीता उनका सब गौरव
माँगा आधा राज्य ,मिला वनवास ,भटकने उनको वन वन
जीत स्वयम्बर ,अर्जुन लाया ,बनी द्रोपदी ,सबकी दुल्हन
गर वनवास नहीं जाते और यूँही मांगते रहते निज हक़
नहीं कोई उनकी कुछ सुनता ,सब प्रयत्न हो जाते नाहक
यह वनवास काम में आया ,किया भ्र्मण और मित्र बनाये
हुआ युद्ध जब महाभारत का,तब वो सभी  साथ में आये
कृपा कृष्ण की ,जीते पांडव ,राज्य चलाया ,सबने हिलमिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास बड़ा ही मुश्किल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Thursday, April 16, 2020

पालतू या फ़ालतू

पड़ी जब तक गले में जंजीर है
बंधा है पट्टा  ,खुली तक़दीर है
दूध ,रोटी ,सब मिलेगी चैन से
जब तलक  तुम बंधे हो एक चेन से
साहब तुमको घुमाने ले जाएंगे
लोग घर के प्यार से सहलायेंगे
बदले में बस दुम  हिलाना पड़ेगा
इशारों पर दौड़ आना पड़ेगा
अजनबी को देख कर के भोंकना
ज़रा सी आहट  हुई तो चौंकना
कभी भी आना नहीं तुम तैश में
जिंदगी पूरी कटेगी ऐश  में
गलती से आजादी की मत सोचना
बाल वरना फिर पड़ेगें नोचना
चेन पट्टा ,गले से हट जाएगा
 ऐश और आराम सब घट जाएगा  
आजादी है ,दुम  उठा कर दौड़ना
कोई छेड़े ,तुम उसे मत छोड़ना
मुश्किलों से पेट पर भर पाओगे
दूध रोटी को तरस पर जाओगे
गली में  भटकोगे ,आवारा बने
रहोगे मिटटी और कीचड से सने
एक दम  हो जाओगे तुम फालतू
अच्छा है बन कर रहो  पालतू

घोटू 
दिवास्वपन

जब होते है सीमित साधन और महत्वाकांक्षी होता मन
तब कहते लोग देखते है ,हम दिन में ही बस दिवास्वपन
सबके अपने अपने सपने ,मन में होना है आवश्यक  
हो लक्ष्य नहीं यदि निर्धारित, कैसे पहुंचोगे तुम उस तक
बिन सपने देखे तुम कैसे ,सीखोगे मंजिल से जुड़ना
ना पंख फड़फड़ाओगे जबतक,तुम कैसे सीखोगे उड़ना
कितने करने पड़ते प्रयास ,कितनी ही आती है मुश्किल
जी जान लगा कर करो काम ,तब ही हासिल होती मंजिल
चूमेगी चरण सफलता जब ,साकार स्वपन  हो जाएगा
तुम होंगे व्यस्त ,तुम्हे सोने का समय नहीं मिल पायेगा
दिन में ,ऑफिस में थके हुए ,झपकी सी आएगी जिस क्षण
तुम अगली मंजिल पाने का ,फिर से देखोगे दिवास्वपन

घोटू 
प्यार या कोरोना

मैंने जब से उन्हें छुआ है ,जीवन में ऐसा रस आया
मैं हुआ बीमार प्यार  में ,मुझ पर उसका,जादू छाया
मैं तनहा ,एकाकी रह कर ,यादों में बस डूबा रहता
मुंह पर ताला लगा अकेला ,मन की बातें किससे कहता  
धोकर हाथ पड़े पर पीछे ,मेरे  शुभचिन्तक बहुतेरे
कैसे भी यह भूत  प्यार का ,उतर जाए बस ,सर से मेरे
जिसने था कर दिया संक्रमित मेरे दिल का कोना कोना
बोले ये रस नहीं प्यार का ,बल्कि वायरस  है कोरोना

घोटू  

Thursday, April 9, 2020

मैं एक कमरे में कैद

मै एक कमरे में कैद मगर, बातें करता उड़ जाने की
तन्हाई में सिमटा ,चाहत ,फिर भी सबसे जुड़ जाने की

संगेमरमर का श्वेत फर्श ,है चार दीवारें ,एक छत है
एक दरवाजा ,एक खिड़की है ,बाकी क्या मुझे जरूरत है
कर लेता हूँ बस ताकझांक,बाहर की दुनिया की हलचल
मैं साधनहीन ,साधना में ,फिर भी खोया रहता हरपल
मैं जिस रस्ते पर निकल गया ,आदत ना है मुड़ आने की
मैं एक कमरे में कैद मगर बातें करता उड़ जाने की  

जो मिला उसी से पेट भरा ,पकवानो की ना चाह मुझे
दुनिया चाहे कुछ भी बोले ,ना रत्ती भर परवाह मुझे
बेतार तार की कुछ तरंग ,है जोड़ रही अपनों के संग
तन्हा हूँ पर लाचार नहीं ,मस्ती में डूबा ,मैं मलंग
तन एकाकी ,मन में हसरत लेकिन सबसे ,मिल पाने की
मैं एक कमरे में कैद मगर ,बातें करता उड़ जाने की

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
लॉक डाउन में

कबतक वक़्त गुजारें हम,उनकी जुल्फों की छाँव में
बैठे बैठे ,कूल्हे दुखते ,सूजन आई  पाँव में
कोरोना ने ऐसा हमको ,तन्हा करके बिठा दिया ,
कैद हो गए ,चारदीवारी में अपने ही ठाँव में
पहले दिनभर काम किया करते थे ,थक कर सो जाते ,
अब सो सो कर थक जाते है ,फंसे  हुए उलझाव में
मुश्किल से हो रही मयस्सर आटा दाल,चाय,चीनी ,
फल सब्जी भी मिल जाते है ,लेकिन दूने भाव में
भूल गए होटल का खाना ,आलू टिक्की और बर्गर ,
खुश है खाकर ,घर की रोटी ,खिचड़ी ,मटर पुलाव में
कामवालियां नहीं आरही ,सब मिल घर का काम करे ,
झाड़ू पोंछा,हाथ घिस रहे ,बर्तन संग घिसाव में
एक वाइरस ने जीवन का सारा रस है छीन लिया ,
मुश्किल के दिन कब बीतेंगे ,रहते इसी तनाव में
फिर भी धैर्य धरे घर बैठे  ,लड़ने महा बिमारी से ,
आज देश का मान, प्रतिष्ठा ,लगे हुए सब दाव में
दीप  जला ज्योतिर्मय करते देश बजा ताली,थाली ,
'अप 'हो रहे ,'लॉकडाउन 'में ,देशभक्ति के भाव में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

Thursday, April 2, 2020

कहाँ जाए बेचारे ?

झगडे मियां ,बीबी के ,होते है हमेशा ही ,
पर पहले ये होता था , जब बात थी बढ़ जाती
गुस्से में या तो शौहर ,जाता था दोस्तों के घर ,
या लड़ झगड़ के बीबी ,मइके को निकल जाती
पर लॉकडाउन में ये  ,सिमटे है घर के अंदर ,
होती लड़ाई है लेकिन ,बेबस है वो बेचारे
घर छोड़ने की धमकी ,कोई नहीं दे सकता ,
एडजस्ट करके रहते ,सब मुश्किलों के मारे

घोटू 

Wednesday, April 1, 2020



अथ : श्री कोरोना  चालीसा

               दोहा
ये करनी है चीन की ,दिया करोना नाम
सारी दुनिया त्रस्त है , हुआ बुरा अन्जाम
फैल रहा चहु ओर है ,परेशान संसार
यही प्रार्थना हम करें ना अब हो संहार

             चौपाई
हे  कोरोना  ,  दुष्ट  भयंकर
सबके मन बैठे बन कर डर    
कहने को तो हो अति छोटे
पर अपनी करनी में  खोटे    
केवल आपस में छूने से
बढ़ जाते हो दिन दूने से  
ऐसी चली तुम्हारी आंधी
सबके मुंह पर पट्टी बाँधी
चीन देश में जब से प्रकटे
तुम सबकी आँखों में खटके
फैल गए अब दुनिया भर में
गाँव गाँव और शहर शहर में
सबको बहुत त्रसित कर डाला
लगा दुकानों पर सब  ताला
अब सारे बाज़ार बंद है
आना जाना ,प्रतिबंध है
भीड़भाड़ में फैल रहे तुम
खेल अनोखा खेल रहे तुम
कोई छींका ,कोई खाँसा
तुमने उसे जाल में फांसा
आता कोई अगर पास में
डर लगता है श्वास श्वास में
कितने हुए शिकार तुम्हारे
बूढ़े तुमको ज्यादा प्यारे  
परेशान  दुनिया का जन जन
 बंद फैक्टरी में प्रोडक्शन
तुम्हरी दहशत रोज बढ़ रही
खेतों में फल,फसल सड़ रही
नर नारी सब   परेशान  है
तुम्हारा क्या कुछ निदान है
घर में घुसे रहो ,बस बैठो
या टीवी देखो  या लेटो
नहीं मिलो तुम इनसे, उनसे
धोते रहो हाथ साबुन से
भूलो झप्पी ,हाथ मिलाना
नमस्कार से काम चलाना
सबके मन में बहुत त्रास है
इक्कीस दिन एकांतवास है
लोग दे रहे तुम्हे गालियां
नहीं आ रही कामवालियां
करते वो जो कभी न सोचा
साहब लगाते झाड़ू ,पोंछा
रहती थी जो हरदम बनठन
मेडम मांज रही है बरतन
जिसे किचन का काम न आये
बोलो क्या पकाये ,क्या खाये
कैसी मुश्किल आन पड़ी है
होटल भी सब बंद पड़ी है
लगते नहीं चाट के ठेले
कब तक पेट भरें ,खा केले
शहरों के मजदूर बिचारे
 भटक रहे है मारे मारे
ना रोजी रोटी ना भोजन
गावों को कर रहे पलायन
लोग चल रहे मीलों पैदल
जैसे तैसे पहुँच रहे घर
घातक बहुत वाइरस हो तुम
करते जीवन तहस नहस तुम
लाये हो इस तरह मुसीबत
सबके मन बैठे बन दहशत
सब देशों की अर्थव्यवस्था
मुश्किल में है ,हालत खस्ता
जग में फैले बन महामारी
तुम एटम बम से भी भारी
 उभरे बन कर ऐसी आफत
पतली करदी सबकी हालत
 जनमानस है दुखी बेचारा  
कब कम होगा कोप तुम्हारा
हे लघु देव , प्रार्थना हर क्षण
दिए विराट रूप में  दरशन
करो कृपा पुनः लघु रूप धर
आये सुख और शांति घर घर
तुम हो श्वास श्वास के स्वामी
कृपा करहु उर  अन्तर्यामी
विनती करें हम हाथ जोड़ कर
हमको तुम अब जाओ छोड़ कर
हम सब पर उपकार करो तुम
अब न अधिक  संहार करो तुम
यह चालीसा जो नर गाये
कोरोना  ना उसे सताये
            दोहा
कह 'घोटू ' हम दूर से ,करते तुम्हे प्रणाम
तंग करो ना ,करोना ,दे दो जीवन दान      

अथ: घोटू कवि  रचित 'करोना चालीसा ' सम्पूर्ण  




अथ : श्री कोरोना  चालीसा

               दोहा
ये करनी है चीन की ,दिया करोना नाम
सारी दुनिया त्रस्त है , हुआ बुरा अन्जाम
फैल रहा चहु ओर है ,परेशान संसार
यही प्रार्थना हम करें ना अब हो संहार

           चौपाई
कोरोना  तुम  दुष्ट  भयंकर
सबके मन बैठे बन कर डर    
कहने को तो हो अति छोटे
पर अपनी करनी में  खोटे    
केवल आपस में छूने से
बढ़ जाते हो दिन दूने से  
ऐसी चली तुम्हारी आंधी
सबके मुंह पर पट्टी बाँधी
चीन देश में जब से प्रकटे
तुम सबकी आँखों में खटके
फैल गए अब दुनिया भर में
गाँव गाँव और शहर शहर में
सबको बहुत त्रसित कर डाला
लगा दुकानों पर सब  ताला
अब सारे बाज़ार बंद है
आना जाना ,प्रतिबंध है
भीड़भाड़ में फैल रहे तुम
खेल अनोखा खेल रहे तुम
कोई छींका ,कोई खाँसा
तुमने उसे जाल में फांसा
आता कोई अगर पास में
डर लगता है श्वास श्वास में
कितने हुए शिकार तुम्हारे
बूढ़े तुमको ज्यादा प्यारे  
परेशान  दुनिया का जन जन
 बंद फैक्टरी में प्रोडक्शन
तुम्हरी दहशत रोज बढ़ रही
खेतों में फल,फसल सड़ रही
नर नारी सब   परेशान  है
तुम्हारा क्या कुछ निदान है
घर में घुसे रहो ,बस बैठो
या टीवी देखो  या लेटो
नहीं मिलो तुम इनसे, उनसे
धोते रहो हाथ साबुन से
भूलो झप्पी ,हाथ मिलाना
नमस्कार से काम चलाना
सबके मन में बहुत त्रास है
इक्कीस दिन एकांतवास है
लोग दे रहे तुम्हे गालियां
नहीं आ रही कामवालियां
करते वो जो कभी न सोचा
साहब लगाते झाड़ू ,पोंछा
रहती थी जो हरदम बनठन
मेडम मांज रही है बरतन
जिसे किचन का काम न आये
बोलो क्या पकाये ,क्या खाये
कैसी मुश्किल आन पड़ी है
होटल भी सब बंद पड़ी है
लगते नहीं चाट के ठेले
कब तक पेट भरें ,खा केले
शहरों के मजदूर बिचारे
 भटक रहे है मारे मारे
ना रोजी रोटी ना भोजन
गावों को कर रहे पलायन
लोग चल रहे मीलों पैदल
जैसे तैसे पहुँच रहे घर
घातक बहुत वाइरस हो तुम
करते जीवन तहस नहस तुम
लाये हो इस तरह मुसीबत
सबके मन बैठे बन दहशत
सब देशों की अर्थव्यवस्था
आज हो रही पत्ता पत्ता
वक़्त काट रहा जैसे तैसे
 पटरी  पर लौटेंगे  कैसे
जग में फैले बन महामारी
तुम एटम बम से भी भारी
 उभरे बन कर ऐसी आफत
पतली करदी सबकी हालत
कई हजारों को संहारा  
कब कम होगा कोप तुम्हारा
हे लघु देव , प्रार्थना हर क्षण
दिए विराट रूप में  दरशन
करो कृपा पुनः लघु रूप धर
आये सुख और शांति घर घर
तुम हो श्वास श्वास के स्वामी
कृपा करहु उर  अन्तर्यामी
विनती करें हम हाथ जोड़ कर
हमको तुम अब जाओ छोड़ कर
हम सब पर उपकार करो तुम
अब न अधिक  संहार करो तुम
            दोहा
कह 'घोटू ' हम दूर से ,करते तुम्हे प्रणाम
तंग करो ना ,करोना ,दे दो जीवन दान      

अथ: घोटू कवि  रचित 'करोना चालीसा ' सम्पूर्ण