छतरी
दे के अपना साया तुमको बचाया ,
जिसने हरदम बारिशों की मार से
बंद बारिश क्या हुई ,छतरी वही ,
मुसीबत लगती तुम्हे निज भार से
वैसे जिनने ख्याल था पल पल रखा ,
और तुमको पाला पोसा प्यार से
बूढ़े होने पर वही माता पिता ,
तुमको लगने लगते है बेकार से
घोटू
दे के अपना साया तुमको बचाया ,
जिसने हरदम बारिशों की मार से
बंद बारिश क्या हुई ,छतरी वही ,
मुसीबत लगती तुम्हे निज भार से
वैसे जिनने ख्याल था पल पल रखा ,
और तुमको पाला पोसा प्यार से
बूढ़े होने पर वही माता पिता ,
तुमको लगने लगते है बेकार से
घोटू
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