Thursday, September 24, 2020

कोरोना की बिमारी में

ना रौनक है ना चहल पहल
सब बैठे घुस ,घर के अंदर
ऐसा सूनापन व्याप्त हुआ ,कोरोना की बिमारी में
मैं मोबइल पर रहूँ व्यस्त
तुम गेम खेलती रहो मस्त
पसरा है इक सन्नाटा सा इस  घर की चार दीवारी में
हम कितने बोला  करते थे
दिल अपना खोला करते थे
अपनी उस तू तू मैं मैं में भी ,मज़ा गज़ब का था आता
अब नहीं मोहल्ले के किस्से
किस की खटपट रहती किस से
किस लड़की का किस लड़के से ,लगता है भिड़ा हुआ टांका
अब ना झगड़ा, ना प्यार प्रीत
ना हंसी ठहाका ,बातचीत
इतनी ख़ामोशी से जीना ,भी बोलो कोई जीना है
ना रेस्टोरेंट है ना पिक्चर
हम ऊब गए अब घुट घुट कर
पत्नी हाथों का रोज भोज ,खा ठंडा पानी पीना है
दो गज की रखो बना दूरी
देखो कैसी ये मजबूरी
मुंह ढका हुआ ,दीदार नहीं ,हम तरस रहे लाचारी में
चुप्पी छोड़ो ,मेडम चहको
हम भी बहकें ,तुम भी बहको  
कुछ हलचल हो ,हो हल्ला हो ,कोरोना की बिमारी में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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