Thursday, September 24, 2020

तूती की आवाज

पगडंडी पर पैर  रगड़ कर ,मैं भटका हूँ
खाई ठोकरें ,और काँटों में ,मैं अटका  हूँ
मुश्किल से काटा है  ये रस्ता  दुखदायी
तब जाकर के मैंने अपनी मंजिल पायी
झाड़फूस की झोपड़ में भी मैंने रहकर
कितने वर्ष गुजारा जीवन पीड़ा सहकर
एक एक ले ईंट ,स्वयं ही है चुनवाया
कितनी कोशिश कर रहने को महल बनाया
मैं पतला सा नाला मिला नदी के जल से
तब जाकर के मेरा मिलन हुआ सागर से
रूप वृहद्ध हुआ पर मैं मुश्किल का मारा
मेरा सारा जल मीठा था अब है खारा
ये सागर दिखने में लगता बहुत बड़ा है
लेकिन मगरमच्छ से पूरा भरा पड़ा है
बहुत देर के बाद ,बात यह समझ में आयी
बहुत बड़ा बनना भी होता है दुखदायी
 छोटी इकाई की एक अपनी हस्ती होती है  
निज मन मरजी जीने की मस्ती होती है
था आनंद निराला नदिया की कल कल में
अब लगता अस्तित्व हीन हूँ ,मैं सागर में
जब छोटा था ,मेरी भी बजती थी तूती
मेरी भी थी एक हैसियत अपनी ऊंची
नक्कारों की नगरी में नक्कार बजेगा
तूती की आवाज यहाँ पर कौन सुनेगा
इसीलिये मित्रों ,मेरा ये मशवरा है
नहीं रुचेगा तुमको लेकिन बड़ा खरा है
इतनी प्रगति करो कि उसका मज़ा उठा लो
जरूरत से ज्यादा चिताएं तुम मत पालो
नहीं जरूरी ,तुम विराट हो ,रहो मंझोले
रहो जहाँ भी ,बस तुम्हारी तूती  बोले

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

No comments:

Post a Comment