बचे हुए का फिर क्या होगा ?
यह कैसी बिमारी आयी
दुनिया भर में आफत छाई
कितने लोग बिमार पड़े है
बेबस और लाचार पड़े है
अस्पताल में 'बेड 'नहीं है
ऑक्सीजन की गैस नहीं है
है चपेट में इसकी घर घर
हम तुम में यदि आई किसी पर
बिछड़ा कोई ,दे गया धोखा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
जब जब यह ख़याल आता है
तो मन सिहर सिहर जाता है
जिसके संग संग जीवन काटा
पीड़ा, सुख दुःख मिल कर बांटा
बंधन जग के सभी तोड़ कर
चला गया यदि साथ छोड़ कर
बस तनहाई बचेगी बाकी
सूना सा जीवन एकाकी
अगर आ गया ऐसा मौका
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
चिंता यही सताती हर क्षण
फिर कैसे गुजरेगा जीवन
मन में सोच हमेशा इतना
कौन निभाएगा तब कितना
ख्याल रखेगा ,बढ़ी उमर में
अगर पड़ गए हम बिस्तर में
जब होंगे मुश्किल के मारे
तभी आएगा समझ हमारे
भेद पराये और अपनों का
बचे हुए का फिर क्या होगा?
सिर्फ कल्पना मात्र डराती
मन में व्याकुलता छा जाती
मैं इतना ज्यादा डर जाता
नहीं ठीक से भी सो पाता
थोड़ा भावुक ,थोड़ा पागल
मैं तड़फा करता हूँ पल पल
जब कि पता कल किसने देखा
मिटता नहीं,नियति का लेखा
लिखा भाग्य का सबने भोगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
साथी अगर छूट जाता है
दुःख का पहाड़ टूट जाता है
क्योंकि उमर ज्यों ज्यों बढ़ती है
साथी की जरूरत पड़ती है
रखते ख्याल एक दूजे का
तभी बुढ़ापा कटे मजे का
हम चाहे कितना भी चाहें
दोनों लोग साथ में जायें
ऐसा भाग्य मगर कब होगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
यह कैसी बिमारी आयी
दुनिया भर में आफत छाई
कितने लोग बिमार पड़े है
बेबस और लाचार पड़े है
अस्पताल में 'बेड 'नहीं है
ऑक्सीजन की गैस नहीं है
है चपेट में इसकी घर घर
हम तुम में यदि आई किसी पर
बिछड़ा कोई ,दे गया धोखा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
जब जब यह ख़याल आता है
तो मन सिहर सिहर जाता है
जिसके संग संग जीवन काटा
पीड़ा, सुख दुःख मिल कर बांटा
बंधन जग के सभी तोड़ कर
चला गया यदि साथ छोड़ कर
बस तनहाई बचेगी बाकी
सूना सा जीवन एकाकी
अगर आ गया ऐसा मौका
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
चिंता यही सताती हर क्षण
फिर कैसे गुजरेगा जीवन
मन में सोच हमेशा इतना
कौन निभाएगा तब कितना
ख्याल रखेगा ,बढ़ी उमर में
अगर पड़ गए हम बिस्तर में
जब होंगे मुश्किल के मारे
तभी आएगा समझ हमारे
भेद पराये और अपनों का
बचे हुए का फिर क्या होगा?
सिर्फ कल्पना मात्र डराती
मन में व्याकुलता छा जाती
मैं इतना ज्यादा डर जाता
नहीं ठीक से भी सो पाता
थोड़ा भावुक ,थोड़ा पागल
मैं तड़फा करता हूँ पल पल
जब कि पता कल किसने देखा
मिटता नहीं,नियति का लेखा
लिखा भाग्य का सबने भोगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
साथी अगर छूट जाता है
दुःख का पहाड़ टूट जाता है
क्योंकि उमर ज्यों ज्यों बढ़ती है
साथी की जरूरत पड़ती है
रखते ख्याल एक दूजे का
तभी बुढ़ापा कटे मजे का
हम चाहे कितना भी चाहें
दोनों लोग साथ में जायें
ऐसा भाग्य मगर कब होगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
No comments:
Post a Comment