संकल्प
ऐसा कोरोना वायरस है कहर ढा रहा ,
घुस कर के फेंफड़ों में वो हर एक बीमार में
घर घर में फैला ,सब ही परेशान दुखी है ,
लोगों की भीड़ लग रही है अस्पताल में
जंगल से ,दरख्तों से खुले आम मिले थी ,
कुदरत मुफत में बांटती थी जिसको प्यार में
ऑक्सीजन प्राणदायिनी का टोटा पड़ा है ,
वो बिक रही है आजकल कालाबाज़ार में
ये दोष नहीं मेरा ,तुम्हारा ,सभी का है
हमने प्रगति के नाम पर प्रकृति बिगाड़ दी
जंगल हरे भरे थे ,हमने वृक्ष काट कर ,
कुदरत की नियामत थी जो उसको उजाड़ दी
और उस जगह कॉन्क्रीट के जंगल खड़े किये ,
बनवा के ऊंची ऊंची कितनी ही इमारतें
करनी का अपनी ही तो है हम फल भुगत रहे ,
बचना बड़ा मुश्किल है अब कुदरत की मार से
तो आओ पश्चाताप करें ,माफ़ी मांग कर ,
कुदरत की इस जमीन को कर दे हरा भरा
जितने भी काटे ,उससे दूने वृक्ष ऊगा दें ,
आओ संवार फिर से दें ,हम अपनी ये धरा
फिर से लगे बहने वो हवा प्राणदायिनी ,
पर्यावरण सुधरे और बहे नदिया और नाले
पंछी की चहक हो जहाँ फूलों की महक हो
ऐसा निराला स्वर्ग हम धरती पर बसा लें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ऐसा कोरोना वायरस है कहर ढा रहा ,
घुस कर के फेंफड़ों में वो हर एक बीमार में
घर घर में फैला ,सब ही परेशान दुखी है ,
लोगों की भीड़ लग रही है अस्पताल में
जंगल से ,दरख्तों से खुले आम मिले थी ,
कुदरत मुफत में बांटती थी जिसको प्यार में
ऑक्सीजन प्राणदायिनी का टोटा पड़ा है ,
वो बिक रही है आजकल कालाबाज़ार में
ये दोष नहीं मेरा ,तुम्हारा ,सभी का है
हमने प्रगति के नाम पर प्रकृति बिगाड़ दी
जंगल हरे भरे थे ,हमने वृक्ष काट कर ,
कुदरत की नियामत थी जो उसको उजाड़ दी
और उस जगह कॉन्क्रीट के जंगल खड़े किये ,
बनवा के ऊंची ऊंची कितनी ही इमारतें
करनी का अपनी ही तो है हम फल भुगत रहे ,
बचना बड़ा मुश्किल है अब कुदरत की मार से
तो आओ पश्चाताप करें ,माफ़ी मांग कर ,
कुदरत की इस जमीन को कर दे हरा भरा
जितने भी काटे ,उससे दूने वृक्ष ऊगा दें ,
आओ संवार फिर से दें ,हम अपनी ये धरा
फिर से लगे बहने वो हवा प्राणदायिनी ,
पर्यावरण सुधरे और बहे नदिया और नाले
पंछी की चहक हो जहाँ फूलों की महक हो
ऐसा निराला स्वर्ग हम धरती पर बसा लें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
No comments:
Post a Comment