धूम्रकेतु
दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो ,आ मंडराते बार-बार हैं
एक अल्पबुद्धि,गंवार है, दूजा ज्यादा समझदार है
एक अंट शंट बातें करके ,चर्चा में रहना चाहता है उसको खुद मालूम नहीं है कि वह क्या कहना चाहता है
पुश्तैनी जागीरदार पर, हुआ आजकल सत्ताच्युत है
फिर भी सत्ता हथियायेगा,मन में ये लालच में अद्भुत है
इतने दिनों देश को लूटा, धन दौलत विदेश पहुंचा दी
घोषित और अघोषित कितने, स्केमो का यहअपराधी
बुद्धू ,किंतु समझता खुद को सबसे ज्यादा समझदार है
दिल्ली ऊपर धूमकेतु दो , आ मंडराते बार-बार है
एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है
दूजा लुभा रहा लोगों को ,दे दे करके खूब प्रलोभन आदत डाल मुफ्तखोरी की, खूब कर रहा उनका शोषण
मूर्ख बनाता है जनता को, हाथ जोड़ ,बन भोला-भाला
कहता मैं हूं दास आपका, लेकिन उसका दिल है काला
जनता की गाढ़ी कमाई से, विज्ञापन दे, छवि चमकाता
अपनी सारी नाकामी का ,दोषी औरों को बतलाता दिल्ली पर ये दोनों चेहरे ,भार बन रहे बार बार हैं
इनसे जल्दी छुट्टी पाओ, आज वक्त की यह पुकार है
दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो आ मंडराते बार-बार हैं
एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment