मास्टर जी की छड़ी
मास्टर जी की लपलपाती बांस की छड़ी
जिससे स्कूल के सब बच्चे, डरते थे हर घड़ी
जिसकी मार यदि हम कभी खाते थे
हथेली पर निशान पड़ जाते थे
जिसके डर ने हमें पढ़ना लिखना सिखाया
बुद्धू से बुद्धिमान बनाया
पता ही नहीं चल पाया, कब वह बड़ी हो गई
लाठी बन कर, लठैतों के हाथ लग गई
सब को धमकाती है
अपना रौब जमाती है
अगर ध्यान देते तो वह बन सकती थी बांसुरी
मधुर स्वरों से भरी
या फिर निसरनी बनकर
लोगों को पहुंचा सकती थी ऊंचाई पर
यह नहीं तो कम से कम
किसी बूढ़े का सहारा सकती थी बन
मगर जो था किस्मत में ,वही वह बनी है
लठैतो के हाथ में आकर तनी है
गनीमत है अर्थी बनने मे काम नहीं आई
वरना किस्मत होती बड़ी दुखदाई
इसलिए संतोष से है पड़ी
मास्टरजी की लपलपाती बांस की छड़ी
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment