आज खून के रिश्ते भी मेहमान हो गए
भाई बहन जो सगे सहोदर, संग संग खेले
जिनके संग आत्मीय रहे, रिश्ते अलबेले
एक दूसरे प्रति प्यार था और दुलार था
गांव के घर में सिमटा ,सब परिवार था
एक वल्दियत थी,जिनकी पहचान एक थी
एक दूसरे की आपस मे देख रेख थी
धीर-धीरे बड़े हुए तो लगे बिछड़ने
कोई गया घर छोड़ पढ़ाई ऊंची करने
ब्याह रचा कर बहने, विदा हुई अपने घर
बचेअकेले घर में ,मां बाबूजी केवल
सूने पन में कटा बुढ़ापा, रहे उदासे
धीरे धीरे उनने भी ली अंतिम सांसे
वह घर जिसमें चहल पहल खुशियां बसती थी आने-जाने, मिलने वालों की बस्ती थी
आज वक्त का उस पर ऐसा कहर हुआ है
दुख के आंसू रोता ,घर खंडहर हुआ है
भाई बहन के सबके अपने-अपने घर हैं
एक दूसरे की सब रखते, खोज खबर है
प्यार पुराना कायम सब में लेकिन जब भी
राखी या दिवाली पर मिलते हैं जब भी
साथ सकल परिवार ,सभी को अच्छा लगता
एक दूसरे के प्रति श्रद्धा, प्रेम झलकता
पर दो-चार दिनों में ,जब उठ जाता मेला
रह जाता है फिर से घर सुनसान अकेला
सबको जल्दी होती बांधे बोरी बिस्तर
नहीं पुराना घर, उनको लगताअपना घर
अपने ही अपनों से है अनजान हो गए
आज खून के रिश्ते भी मेहमान हो गए
मदन मोहन बाहेती घोटू
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