दबे पांव आ गया बुढ़ापा
मैंने कितना रोका टोका बात न मानी
दबे पांव आ गया बुढ़ापा गई जवानी
मैंने लाख कोशिशें की, कि यह ना आए
फूल जवानी का न कभी भी मुरझा पाए
कितने ही नुस्खे अपनाएं, पापड़ बेले
जितने भी हो सकते थे, सब किये झमेले
च्यवनप्राश के चम्मच चाटे, टॉनिक पिए
किया फेशियल और बाल भी काले किये
रंग-बिरंगे फैशन वाले कपड़े पहने
बन स्मार्ट, लगा तेज फुर्तीला रहने
जिम में जाकर करी वर्जिशें,भागा दौड़ा
लेकिन ये ना माना, आकर रहा निगोड़ा
मैं जवान हूं, सोच सोच कर मन बहलाया
हुई कोशिशें लेकिन मेरी सारी जाया
धीरे धीरे थी मेरी आंखें धुंधलाई
और कान से ऊंचा देने लगा सुनाई
तन की आभा क्षीण, अंग में आई शिथिलता
मुरझाया मुख, जो था कभी फूल सा खिलता
शनेःशनेःचुस्ती फुर्ती में कमी आ गयी
मेरे मन में बेचैनी सी एक छा गयी
और लग गई, तन पर कितनी ही बिमारी
थोड़ी थोड़ी मैंने भी थी हिम्मत हारी
पर फिर मैंने,अपने मन को यह समझाया
यह जीवन का चक्र, रोक कोई ना पाया
इस से डरो नहीं तुम बिल्कुल मत घबराओ
बल्कि उम्र के इस मौसम का मजा उठाओ
क्योंकि यही तो बेफिक्री की एक उमर है
ना चिंता है, भार कोई भी ना सर पर है
जो भी कमाया,जीवन में,उपभोग करो तुम
मरना सबको एक दिवस है, नहीं डरो तुम
समझदार अंतिम पल तक है मजा उठाता
डरो नहीं , इंज्वॉय करो तुम यार बुढ़ापा
मदन मोहन बाहेती घोटू
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