घर के झगड़े
घर के झगड़े ,घर में ही सुलझाए जाते
लोग व्यर्थ ही कोर्ट कचहरी को है जाते
संग रहते सब ,कुछ अच्छे, कुछ लोग बुरे हैं
यह भी सच है ,नहीं दूध के सभी धुले हैं
छोटी-छोटी बातों में हो जाती अनबन
एक दूसरे पर तलवारे ,जाती है तन
वैमनस्य के बादल हैं तन मन पर छाते
घर के झगड़े घर में ही सुलझाए जाते
कुछ में होता अहंकार, कुछ में विकार है
इस कारण ही आपस में पड़ती दरार है
होते हैं कुछ लोग,हवा जो देते रहते
आग भड़कती है तो मज़ा लूटते रहते
जानबूझकर लोगों को है लड़ा भिड़ाते
घर के झगड़े ,घर में ही सुलझाए जाते
पर जबअगला है थोड़ी मुश्किल में आता
सब जाते हैं खिसक कोई ना साथ निभाता
इसीलिए इन झगड़ों से बचना ही हितकर
जीना मरना जहां ,रहे हम सारे मिलकर
बादल हटते , फूल शांति के है खिल जाते
घर के झगड़े घर में ही सुलझाए जाते
मदन मोहन बाहेती घोटू
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