चुहुलबाजियां
चिढ़ा चिढ़ा कर तुम्हें सताना, मेरे मन को बहुत सुहाता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता
हम दोनों ही बूढ़े प्राणी ,इस घर में रह रहे इकल्ले कामकाज कुछ ना करना है,बैठे रहते यूं ही निठल्ले
कब तक बैठे देखें टीवी ,बिन मतलब की गप्पें मारे
सचमुच,बड़ा कठिन होता है, कैसे अपना वक्त गुजारें
इसीलिए हम तू तू,मैं मैं, करते मजा बहुत हैआता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता
कई बार तू तू मैं मैं जब ,झगड़े में परिवर्तित होती
बात बिगड़ती,मैं इस करवट और तू है उस करवट सोती
तेरा रूठना,मेरा मनाना, यह भी होता है एक शगल है
यूं ही मान मनौव्वल में बस,जाता अपना वक्त निकल है
हिलमिल फिर हम एक हो जाते,तू हंसती मैंभीमुस्कुराता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस ,अपना वक्त गुजर है जाता
इसी तरह मेरी तुम्हारी, आपस में चलती है झकझक
जबतक हम तुम संगसंग है तबतक इस घर में है रौनक
तुम कितनी ही रूठ जाओ पर भाग्य हमारा कभी न रुठे
अपनी जोड़ी रहे सलामत ,साथ हमारा कभी न छूटे ईश्वर रखे बनाकर हरदम ,सात जन्म का अपना नाता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस, अपना वक्त गुजर है जाता
मदन मोहन बाहेती घोटू
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