मेरी दादी
आज अचानक याद आ गई मुझको मेरी दादी की
नेह भरी, प्यारी, मुस्काती, निश्चल सीधी-सादी की
गोरा चिट्टा गोल बहुत था, जब हंसती मुस्कुराती थी
तो हाथों से मुंह ढक अपने, टूटे दांत छुपाती थी
दादाजी थे स्वर्ग सिधारे ,जब बाबूजी नन्हे थे
पालपोस कर बड़ा किया,दुख कितने झेले उनने थे
वात्सल्य की मूरत थी वो, सब के प्रति था प्यार भरा बच्चों खातिर,सबसे भिड़ती,डर था मन में नहीं जरा
हर मुश्किल से टक्कर लेती, उनमें इतनी हिम्मत थी
संघर्षों से खेली थी वह ,बड़ी जुझारू, जीवट थी
मुझे सुला अपनी गोदी में, मेरा सर सहलाती थी
किस्से और कहानी कहती,अक्सर मुझे सुलाती थी
मैं शैतानी करता कोई ,अगर शिकायत आती थी
तो बाबूजी की पिटाई से, दादी मुझे बचाती थी
नन्हें हाथों से दादी की, पीठ खुजाया करता मैं
तो बदले में दादी से ,एक पैसा पाया करता मैं
पांव दुखा करते दादी के, उन्हें गूंधता में चढ़कर
दो पांवों के दो पैसे ,दादी से लेता मैं लड़ कर
सब पर स्नेह लुटानेवाली ,सबके मन को भाती की
आज अचानक याद आगई ,मुझको मेरी दादी की
मदन मोहन बाहेती घोटू
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