गुब्बारे
भैया हम गुब्बारे हैं
भरी हवा है, फूल रहे हम मगर गर्व के मारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
अभी जवानी है, तनाव है,चमक दमक चेहरे पर है
उड़े उड़े हम फिरते, जैसे लगे हुए हम पर, पर हैं
बच्चे हम संग खेल रहे ,हम बच्चों का मन बहलाते
शुभअवसर पर, साज सजावट में हम सबके मनभाते संग हवा के उड़ते रहते, हम निरीह बेचारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
दिखने की ढब्बू है लेकिन हम तन के कमजोर बड़े
जाते फूट,अगर छोटा सा कांटा भी जो हमें गढ़े
यूं भी धीरे-धीरे हवा निकल जाती, मुरझाते हम
क्षणभंगुर है जीवन फिर भी रहते हैं मुस्काते हम
प्राणदायिनी हवा ,हवा में बसते प्राण हमारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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