चालिस पार ,ढलती बहार
लगा उड़ने तन से , जवानी का पालिश
उमर भी है चालिस,कमर भी है चालिस
कनक की छड़ी सी कमर आज कमरा
रहा पहले जैसा ,नहीं नाज नखरा
गए दिन मियां फाख्ता मारते थे
बचाकर नजर जब सभी ताड़ते थे
नहीं मिलने की कोई करता गुजारिश
उमर भी है चालिस, कमरभीहै चालिस
बेडौल सा तन,हुआ ढोल जैसा
बुढ़ापे का आने लगा है अंदेशा
हंसी की खनक भी बची है नहीं अब
वो रौनक वो रुदबा, हुआ सारा गायब
मोहब्बत की घटने लगी अब है ख्वाइश
उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस
हनुमान चालीसा पढ़ना पढ़ाना
और राम में मन अपना रमाना
चेहरे की रौनक खिसकने लगी है
जाती जवानी सिसकने लगी है
गए चोंचले सब ,झप्पी नहीं किस
उमर भी यह चालिस, कमरभी है चालिस
न मौसम बसंती ,न मौंजे न मस्ती
जुटो काम में और संभालो गृहस्थी
नहीं अब बदन में बची वो लुनाई
सफेदी भी बालों में पड़ती दिखाई
जलवे जवानी के हैं टाय टाय फिस
उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस
मदन मोहन बाहेती घोटू
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