कितना बहुत होता है
संतोष जब अपनी परिधि को तोड़ता है
तो वह कुछ और पाने के लिए दौड़ता है
जब भी चाह और अभिलाषाएं बलवती होती है
तभी नए अन्वेषण और प्रगति होती है
इस और की चाह ने हमें बहुत कुछ दिया है
आदमी को चांद तक पहुंचा दिया है
अभी जितना है अगर उतना ही होता
तो विज्ञान इतना आगे नहीं बढ़ा होता
और की चाह जीवन में गति भरती है
और की कामना, कर्म को प्रेरित करती है
इसलिए आदमी को चाहिए कुछ और
यह मत पूछो कितना बहुत होता है ,
क्योंकि और का नहीं है कोई छोर
कल मेरे पास बाइसिकल थी
मुझे लगा इतना काफी नहीं है
मैंने और की कामना की
स्कूटर आइ, फिर मारुति फिर बीएमडब्ल्यू
और फरारी की चाह है
यही प्रगति की राह है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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