गई शान,अभिमान पस्त है ,
फूटी किस्मत अब रोती है
कभी मूसलाधार बरसता ,
अब तो बस रिमझिम होती है
बादल आते हैं मंडराते ,
फिर भी सूखा पड़ा हुआ है
ना बरसेगा ये बादल भी,
अपनी जिद पर अड़ा हुआ है
बहती कभी हवाएं ठंडी
लेकिन सौंधी गंध न आती
अब बगिया में फूल खिलते
जिन पर थी तितली मंडराती
इस मौसम में सूखी बगिया ,
अपनी सब रौनक होती है
कभी मूसलाधार बरसता,
अब तो बस रिमझिम होती है
कभी उमंगों के रंगों में ,
रंगा हुआ था सारा जीवन
पंख लगा कर हम उड़ते थे ,
मौज मस्तियों का था आलम
पहले थे पकवान उड़ाते ,
अब खाते हैं सूखी रोटी
काम न आती, जो जीवन भर
करी कमाई हमने मोटी
बोझिल मन और बेबस आंखें,
बरसाती रहती मोती है
कभी मूसलधार बरसता,
अब तो बस रिमझिम होती है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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