सर्दी की धूप से
आज सुबह से नहीं दिखी तुम
सर्दी से डर कहां छुपी तुम
रोज सुबह किरणों की डोली ,
में आती थी तुम सज धज कर
मन में लिए प्यार की उष्मा
उजली उजली ,सुंदर, मनहर
तुम्हे देख ,अलसाये तन में
स्फूर्ति सी थी आ जाती
तुम्हारा स्पर्श सुहाता,
तुम सबके ही मन को भाती
पर ना झलक दिखाई अभी तक,
बहुत कर रही हमें दुखी तुम
आज सुबह से नहीं दिखी तुम
गरम गरम, सर्दी की दुश्मन ,
धीरे-धीरे पग फैलाती
जैसे-जैसे दिन चढ़ता था ,
छत, आंगन में तुम छा जाती
आत्मसात तुम्हारी गर्मी ,
कर प्रसन्नता होती मन में
तुमसे ज्यादा प्यारा कुछ भी ,
लगता नहीं सर्द मौसम में
किंतु कोहरे की कंबल में ,
लिपटी हुई ,कहां दुबकी तुम
आज सुबह से नहीं दिखी तुम
मदन मोहन बाहेती घोटू
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