गलतफहमी
तुम आए और रुके
मेरे पैरों की तरफ झुके
मैं मूरख व्यर्थ ही रहा था गदगद
तुम झुके हो मेरे प्रति होकर श्रद्धानत
और छूना चाहते हो मेरे पाद
चरण स्पर्श कर मांगने आए हो आशीर्वाद
पर तुम्हारे झुकने में नहीं कोई श्रद्धा का भाव था
यह तो तुम्हारा नया पैंतरा था, दाव था
तुम तो झुके थे खींचने के लिए मेरी टांग
या चीते की तरह झपट कर लगाने को छलांग
तुम्हारा धनुष सा झुकना तीर चलाने के लिए था
या चोरों सा मेरे घर में सेंध लगाने के लिए था तुम झुके थे सर्प की तरह दंश मारने
या फिर कुल्हाड़ी की तरह मुझे काटने
और मैं यूं ही हो गया था गलतफहमी का शिकार
क्योंकि मुश्किल है बदलना तुम्हारा व्यवहार बिच्छू डंक नहीं मारेगा, यह सोचना है नादानी
और हमेशा खारा ही रहता है समंदर का पानी तुम भले ही लाख धोलो गंगाजल से
पर सफेदी की उम्मीद मत करना काजल से
मदन मोहन बाहेती घोटू
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