Wednesday, March 15, 2023

गलतफहमी 

तुम आए और रुके
मेरे पैरों की तरफ झुके
मैं मूरख व्यर्थ ही रहा था गदगद 
तुम झुके हो मेरे प्रति होकर श्रद्धानत 
और छूना चाहते हो मेरे पाद
चरण स्पर्श कर मांगने आए हो आशीर्वाद 
पर तुम्हारे झुकने में नहीं कोई श्रद्धा का भाव था
  यह तो तुम्हारा नया पैंतरा था, दाव था 
 तुम तो झुके थे खींचने के लिए मेरी टांग 
 या चीते की तरह झपट कर लगाने को छलांग 
तुम्हारा धनुष सा झुकना तीर चलाने के लिए था 
या चोरों सा मेरे घर में सेंध लगाने के लिए था तुम झुके थे सर्प की तरह दंश मारने
 या फिर कुल्हाड़ी की तरह मुझे काटने 
और मैं यूं ही हो गया था गलतफहमी का शिकार 
क्योंकि मुश्किल है बदलना तुम्हारा व्यवहार बिच्छू डंक नहीं मारेगा, यह सोचना है नादानी 
और हमेशा खारा ही रहता है समंदर का पानी तुम भले ही लाख धोलो गंगाजल से 
पर सफेदी की उम्मीद मत करना काजल से

मदन मोहन बाहेती घोटू

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