कभी कभार
रोज-रोज की बात न करता, कहता कभी कभार
बरसा दिया करो हम पर भी ,तुम थोड़ा सा प्यार
प्यासी आंखें निरखा करती ,तेरा रूप अनूप
हम पर भी तो पड़ जाने दो गरम रूप की धूप
हो जाएंगे शांत हृदय के ,दबे हुए तूफान
जन्म जन्म तक ना भूलूंगा, तुम्हारा एहसान
मादक मदिरा के यौवन की यदि छलका दो जाम
सारा जीवन ,न्योछावर कर दूंगा तेरे नाम
रहे उम्र भर ,कभी ना उतरे ,ऐसा चढ़े खुमार रोज-रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार
बरसा दिया करो हम पर भी, तुम थोड़ा सा प्यार
घड़ी दो घड़ी बैठ पास में सुन लो दिल की बात
अपने कोमल हाथों से सहला दो मेरे हाथ
ना मांगू चुंबन आलिंगन, ना मांगू अभिसार
मुझे देख तिरछी चितवन से मुस्कुरा दो एक बार
तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा करके यह उपकार लेकिन मुझको मिल जाएगा खुशियों का संसार
मुझे पता है तुम जवान, मैं जाती हुई बहार
रोज रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार
बरसा दिया करो हम पर भी बस थोड़ा सा प्यार
मदन मोहन बाहेती घोटू
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