शिकायत तकिये की
कल रजाई से बात करी तो
मेरा तकिया हुआ रूआंसा
बस रजाई ही तुमको प्यारी
प्यार न करते मुझे जरा सा
वह तो सर्दी की साथिन है
मैं साथी हूं बारहमासी
बनकर तुम्हारा सिरहाना
मेहनत करता अच्छी खासी
जब तुम बिस्तर पर सोते हो
सर तुम्हारा ऊंचा रखता
तुमको लेने नींद चैन की
पड़ती मेरी आवश्यकता
कभी भींच लेते बाहों में
या छाती से चिपकाते हो
या फिर दबा बीच टांगों के
एक नया सा सुख पाते हो
करते हो उपयोग हमेशा
जैसे तुम्हारा दिल करता
हरदम सेवा में रह हाजिर
नहीं कभी मैं नखरे करता
सोते तुम मुझ पर सर रखकर
या अपनी बाहों में भरकर
में हूं हर मौसम का साथी
मेरा मिलन हमेशा सुखकर
तुम्हें रजाई जकड़ा करती
लेकिन मुझे जकड़ते हो तुम
मुझे बना हथियार प्यार का
भाभी जी से लड़ते हो तुम
जब भी कभी लेटते हो तुम
मेरे बिन ना सो पाते हो
मैं इतना सुख देता हूं पर
गुण रजाई के तुम गाते हो
सौतेला व्यवहार तुम्हारा
मुझको नहीं पसंद जरा सा
कल रजाई से बात करी तो
मेरा तकिया हुआ रूआंसा
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment