संबोधन
बेटे को *बिटुवा* कहते तो अच्छा लगता है
बेटी को *बिटिया* कहने से प्यार उमड़ता है
यह मेरे *वो *है कहकर पत्नी शर्माती है लेकिन पति की *वो* होने से वह घबराती है
कहो पिताजी को पापा तो लगता अपनापन
माताजी को *मां* कहना है ममता का बंधन बड़े भाई को *भैया* कहना चाचा को *चाचू*
और बहन को *दीदी* कहना दादा को *दादू *
यह कुछ संबोधन है जो परिवार बनाते हैं और आपके रिश्तों में अपनापन लाते हैं सदा पिता को *आप* लगा संबोधित करते हैं
पर मां को* तू *,ईश्वर को भी* तू* ही कहते है
बूढ़े बाबा खुश होते *अंकलजी *कहने पर
हो जाती नाराज पड़ोसन *आंटी जी* कहने पर
*सुनते हो जी *का संबोधन पति का होताअक्सर
किंतु पुकारा जाता है अब नाम एक दूजे का लेकर
संबोधन में आदर देने नाम आगे *जी* *साहब *लगाते
पत्नी के भ्राता साला ना वह है *साले साहब* कहाते
नाम तुम्हारा ही लेकर हरदम जाता तुम्हें पुकारा
नाम ही है पहचान तुम्हारी नाम बिन ना अस्तित्व तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती घोटू
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