नींव के पत्थर
एक विशाल इमारत बनकर
गौरव से तुम उठा रहे सर
टिके हुए तुम जिसके ऊपर
हम हैं उसी नींव के पत्थर
हम घुट घुट कर सांस ले रहें
नाम तुम्हारा दीवारॉ पर
इतना सारा बोझ तुम्हारा
उठा रहे अपने कंधों पर
है इसमें ही हर्ष हमारा
सदा रहे उत्कर्ष तुम्हारा
फहराए तुम्हारा परचम
आते वर्षों वर्ष तुम्हारा
है कोशिश हमारी हरदम
भूकंपों से बचे रहो तुम
देखे तुमको लोग सराहें
ऐसे सुन्दर सजे रहो तुम
दिन-दिन करते रहो तरक्की
हम तो यही चाहते हैं बस
हैं इतनी सी पर आकांक्षा
दे दो हमको भी थोड़ा यश
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment