सोना या पीतल
मैं यही जानने बेकल हूं
मैं सोना हूं या पीतल हूं
दोनों एक जैसे रंगत में
पर फर्क बहुत है कीमत में
एक से बनते हैं आभूषण
एक से बनते घर के बर्तन
एक से गौरी का तन सजता
एक जीवन की आवश्यकता
बर्तन में पकता है भोजन
और खाना खाते हैं सब जन
पीतल के ही लोटा गिलास
जिनसे पानी पी, मिटे प्यास
अग्नि पर नित्य चढ़ा करते
होते हैं शुद्ध रोज मँझते
अति आवश्यक है जीवन में
है बहुत मधुरता खनखन में
सोना पीतल सा रंगीला
यह भी पीला वह भी पीला
लेकिन सोना आभूषण बन
करता सज्जित नारी का तन
गौरी सोलह सिंगार करे
हर कोई स्वर्ण से प्यार करें
पर जब होता कोई उत्सव
तब दिखता सोने का वैभव
वरना अक्सर चोरी डर से
वह नहीं निकलता लॉकर से
श्रृंगार प्रिया का सजवाता
जब होता मिलन ,उतर जाता
बहुमूल्य न ,बन बहुउपयोगी
जीना मेरी किस्मत होगी
काम आता सबके संग पल-पल
मैं स्वर्ण न, अच्छा हूं पीतल
मदन मोहन बाहेती घोटू
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