कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
*एक विकसित होती हुई कन्या की मनोदशा*
उछलते कूदते कट रहा था बचपन
पर बढ़ती हुई उम्र ले आई परिवर्तन
तन-बदन में आने लगी बदलाव की आहट
मन में होने लगी थोड़ी सी घबराहट
आईने में खुद को निहारने का शौक बढ़ गया धीरे-धीरे मुझ पर जवानी का रंग चढ़ गया
मन की गतिविधि जाने कहां भटकाने लगी बिना मतलब के ही कभी-कभी हंसी आने लगी अल्हड़ बचपन अब कुछ शर्मिला होने लगा
मैं बड़ी हो गई हूं मन में यह एहसास जगा
लोगों की निगाहें बदन को बेंधने लगी
आ गया थोड़ा चुलबुलापन और दिल्लगी
तो क्या अब मेरे उड़ जाने के दिन आ रहे हैं
एक नया संसार बसाने के दिन आ रहे हैं
जिस घर में मैं पली ,बड़ी, उसे छोड़ना होगा एक अनजान परिवार से नाता जोड़ना होगा अपने मां-बाप के लिए में पराई हो जाऊंगी अपने पति की प्रीत में इतना खो जाऊंगी
ना पिताजी की डांट ना मम्मी का अनुशासन अब एक नए घर में चलेगा मेरा शासन
मेरा एक पति होगा ,नया घर बार होगा
मैं घर की रानी बनूगी ,नया संसार होगा
मेरा जीवन साथी मेरी हर बात मानेगा
मुझे अपने मां-बाप से भी बढ़कर जानेगा
मेरे भी बच्चे होंगे जिन्हें मैं पालूंगी प्यार से
और जुड़ जाऊंगी एक नए परिवार से
मगर अगर सास खडूस और हुई तानेबाज छोटी-छोटी बातों पर अगर हुई नाराज
अगर जुल्म करेगी तो सह ना पाऊंगी
पति के साथअपना अलग घर बढ़ाऊंगी
अरे मैं पगली कहां से कहां भटक गई
जीवन के आने वाले दौर में अटक गई
अभी तो मुझे पढ़ना लिखना है, बड़ा होना है काबिल बनना है अपने पैरों खड़ा होना है
पहले एक स्वावलंबी नारी बनूंगी
फिर किसी की दुल्हन दुलारी बनूंगी
हम औरतों की भी अजब जिंदगानी है
बचपन किसी का और किसी की जवानी है शादी के बाद जीवन में बड़ा मोड़ आता है
अपने मां-बाप भाई बहन को छोड़ आता है एकदम बदले वातावरण में निभाना पड़ता है सास ससुर और पति का प्यार पाना पड़ता है जिसको मुश्किल होताअपने कपड़े संभालना
उसे पड़ता है पूरी गृहस्थी संभालना
किस्मत में क्या है ,कौन और कैसा लिखा है संघर्ष लिखा है गरीबी या पैसा लिखा है
जो भी हो जैसा होगा देखा जाएगा
पर अभी तो पढूं क्योंकि जीवन में यही काम आएगा
मदन मोहन बाहेती घोटू
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