Wednesday, May 25, 2011

पौ फटी

 पौ  फटी
कलियाँ चटकी
भ्रमरों के गुंजन स्वर
महके
डाल डाल पर पंछी
चहके
गौ रम्भाई
मंदिर से घंटा ध्वनि आई
शंखनाद भी दिया सुनाई
मंद समीरण के झोंको ने आ थपकाया
प्रकृति ने कितने ही स्वर से मुझे जगाया
लेकिन मेरी नींद  न टूटी
किन्तु फ़ोन की एक घंटी से मैं जग बैठा
कितना भौतिक
मुझको है धिक्

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

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