Sunday, August 7, 2011

दास्ताने लालू

दास्ताने लालू
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उनकी बकवास भी लोगों को भली लगती थी
उनकी  भैंसें भी  हरे नोट चरा  करती  थी
भीड़ रहती थी लगी,घर पर सदा भक्तों की
ये  तो है बात रंगीले,   सुनहरे वक्तों  की
बोलती रहती थी तूती बिहार में जिनकी
बड़ी बिगाड़ दी हालत है हार ने इनकी
नाव जो डूबी,संग छोड़ा साथ वालों ने
आया जो वक्त बुरा, छोड़ दिया सालों ने
अब तो तन्हाई में बस वक्त गुजारा करते
गए वो दिन जब मियां,फाख्ता मारा करते
खाते है बैठके बीबी के संग लिट्टी,आलू
सबकी होती है यही नियति,है हम सब लालू




मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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