नेताजी का स्वप्नभग्न
सजा कर हमने रखी थी ,सिला कर पोषक नूतन
हमारे भी दिन फिरेंगे ,बड़े आशावान थे हम
क्या पता कब मिनिस्ट्री के लिए आ जाए बुलावा
मगर ये सब हो न पाया,सिर्फ मन का था छलावा
भीड़ चमचों की गयी छंट, इस तरह निष्क्रिय रह के
बिना कुर्सी के भला हम ,अब जिएंगे,किस तरह से
घोटू
सजा कर हमने रखी थी ,सिला कर पोषक नूतन
हमारे भी दिन फिरेंगे ,बड़े आशावान थे हम
क्या पता कब मिनिस्ट्री के लिए आ जाए बुलावा
मगर ये सब हो न पाया,सिर्फ मन का था छलावा
भीड़ चमचों की गयी छंट, इस तरह निष्क्रिय रह के
बिना कुर्सी के भला हम ,अब जिएंगे,किस तरह से
घोटू
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