Saturday, April 4, 2015

प्यार की झंकार

        प्यार की झंकार

जब पायल की छनछन ,दिल को छनकाती है
भटक  रहे  बनजारे  मन  की  बन   आती है
   जब अपना मन, बन जाता अपना ही दुश्मन
   नज़रें उलझ किसी से ,बन जाती है उलझन
छतरी तर होने से बचा नहीं पाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
       जब सपने ,अपने ,साकार ,सामने आते
       बन  हमराही कोई  बांह थामने   आते
जेठ भरी दोपहरी बन सावन जाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
     जब मैं और तुम मिल कर,एक हो जाते है हम
      गम  सारे  गुम  हो जाते , हो  जाता    संगम 
दिल की बस्ती में मस्ती सी छन जाती है
भटक  रहे  बनजारे मन की  बन आती  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

No comments:

Post a Comment