लंगोटिया यार
कभी जो हमारा लंगोटिया यार था
हमारे लिए मरने मिटने को तैयार था
आजकल वो बड़ा आदमी बन गया है
थोड़ा गरूर से तन गया है
उसने लंगोट पहनना छोड़ दी है
और शायद लंगोट की मर्यादा तोड़ दी है
इसलिए लंगोटिया यारों को भुला बैठा है
हमेशा गर्व से रहता ऐंठा है
आजकल वो ब्रीफ पहनता है
ब्रीफ में बात करता है
ब्रीफकेस लेकर शान से चलता है
लंगोटी की डोरी का कसाव ,
अब ब्रीफ के एलास्टिक की तरह लचीला हो गया है
वो थोड़ा कैरेक्टर का भी ढीला हो गया है
पद और पैसा पाकर लोग बदलने लगते है
नए वातावरण में ढलने लगते है
कभी कभी इतने मगरूर हो जाते है
कि अपने लंगोटिया यारों को भी भूल जाते है
पर ये अब भी मुस्करा कर बात करता है
शायद डरता है
कहीं हम उसके बारे में लोगो को
उलटा सीधा न बोल दें
उसके बचपन की पोल न खोल दें
घोटू
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