चार पंक्तियाँ -२
हमने ये कहा रात चुरा चाँद ले गयी ,
बदली के संग झोंके हवा के फरार है
तितली हो मधुमख्खियाँ हो चाहे भ्र्मर हो,
फूलों का रस चुराने को सब बेकरार है
उनने समझ लिया इसे इल्जाम स्वयं पर ,
कितने है चौकन्ने और वो होशियार है
कहते है इसको तिनका है दाढ़ी में चोर की ,
खुजला रहे वो अपनी दाढ़ी ,बार बार है
घोटू
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