Friday, September 28, 2018

चार पंक्तियाँ -२ 

हमने ये कहा रात चुरा चाँद ले गयी ,
बदली के संग झोंके हवा के फरार है 
तितली हो मधुमख्खियाँ हो चाहे भ्र्मर हो,
फूलों का रस चुराने को सब बेकरार है 
उनने समझ लिया इसे इल्जाम स्वयं पर ,
कितने है चौकन्ने और वो होशियार है 
कहते है इसको तिनका है दाढ़ी में चोर की ,
खुजला रहे वो अपनी दाढ़ी ,बार बार है 

घोटू 

No comments:

Post a Comment