किस तरह से जी रहा हूँ
ये मत पूछो कि जिंदगी,
कैसे बिता रहा हूँ
संतोष का फल बड़ा मीठा होता है ,
आजकल वो ही खा रहा हूँ
और जिंदगी की आपाधापी में ,
विवशता के आंसू पी रहा हूँ
बस इसी तरह खाते पीते ,
जिंदगी जी रहा हूँ
मेरा जीवन ,
खोमचे में सजे हुए खाली गोलगप्पों की तरह ,
इन्तजार में है उस हसीना के ,
जो इनमे प्यार का चटपटा पानी भर ,
चटखारे ले लेकर गटकाती जाये
जो जीवन की भूलभुलैया में ,
मेरी ऊँगली पकड़ ,खुद भी भटके,
और मुझे भी भटकाती जाए
मैं कंटीली झाड़ियों में खिला हुआ ,
गुलाब का वो फूल हूँ ,
जिसे प्रतीक्षा है उस रूपसी की ,
जो उसे तोड़ ,अपने केशों में सजा ले
मैं कश्मीर की पश्मीना शाल की तरह ,
दूकान में सिमटा बैठा ,
इन्तजार में हूँ कि कोई सुंदरी ,
आये और मुझे ओढ़ कर ,
सर्दी में गर्मी का मजा ले
तन्हाई ,
जिसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है ,
वो भी मुझे काटने को दौड़ रही है और ,
मेरा अकेलापन मुझे कचोटता रहता है
औरों की भरी पूरी खिलती बगिया के रौनक देख ,
मेरे सीने पर सांप लोटता रहता है
इस तरह की बेबसी के आलम में ,
खून के घूँट पी रहा हूँ
बस आजकल इसी तरह जी रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ये मत पूछो कि जिंदगी,
कैसे बिता रहा हूँ
संतोष का फल बड़ा मीठा होता है ,
आजकल वो ही खा रहा हूँ
और जिंदगी की आपाधापी में ,
विवशता के आंसू पी रहा हूँ
बस इसी तरह खाते पीते ,
जिंदगी जी रहा हूँ
मेरा जीवन ,
खोमचे में सजे हुए खाली गोलगप्पों की तरह ,
इन्तजार में है उस हसीना के ,
जो इनमे प्यार का चटपटा पानी भर ,
चटखारे ले लेकर गटकाती जाये
जो जीवन की भूलभुलैया में ,
मेरी ऊँगली पकड़ ,खुद भी भटके,
और मुझे भी भटकाती जाए
मैं कंटीली झाड़ियों में खिला हुआ ,
गुलाब का वो फूल हूँ ,
जिसे प्रतीक्षा है उस रूपसी की ,
जो उसे तोड़ ,अपने केशों में सजा ले
मैं कश्मीर की पश्मीना शाल की तरह ,
दूकान में सिमटा बैठा ,
इन्तजार में हूँ कि कोई सुंदरी ,
आये और मुझे ओढ़ कर ,
सर्दी में गर्मी का मजा ले
तन्हाई ,
जिसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है ,
वो भी मुझे काटने को दौड़ रही है और ,
मेरा अकेलापन मुझे कचोटता रहता है
औरों की भरी पूरी खिलती बगिया के रौनक देख ,
मेरे सीने पर सांप लोटता रहता है
इस तरह की बेबसी के आलम में ,
खून के घूँट पी रहा हूँ
बस आजकल इसी तरह जी रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
No comments:
Post a Comment