मैं की मैं मैं
तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं तुमको दे दूंगा अपना मैं रहे प्रेम से हम मिलजुल कर ,बंद करें अब तू तू मैं मैं
जब तक तुममें मैं, मुझमें मैं ,अहम अहम से टकराता है
अहम अगर जो हम बन जाये,तो जीवन में सुख आता है अपनी मैं का विलय करें जो,हम में, सोच बदल जाएगी रोज-रोज की खींचातानी, हम होने से थम जाएगी
और जिंदगी बाकी अपनी फिर बीतेगी मजे मजे में
तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं दे दूं तुमको अपना मैं
दुनिया में सारे झगड़ों की, जड़ है ये मैं की बीमारी
मैं के कारण ही होती है, जग में इतनी मारामारी मैं सब कुछ हूं,मेरा सब कुछ,सोच सोच हम इतराते हैं खाली हाथ लिए है आते,खाली हाथ लिये जाते हैं
तो फिर क्यों झगड़ा करते, क्या मिल जाता हमको इसमें तुम मुझको अपना मैं दे दो ,मैं तुमको दे दूं अपना मैं
रहे प्रेम से, हम मिलजुल कर,बंद करें अब तू तू मैं मैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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