अच्छा लगता है
कभी-कभी तुम्हारा लड़ना, अच्छा लगता है
बात मनाने ,पीछे पड़ना ,अच्छा लगता है
यूं ही रूठ जाती हो, मुझसे बात न करती हो
कभी-कभी ऐसे भी अकड़ना, अच्छा लगता है
त्योहारों पर जब सजती तो ,गोरे हाथों में ,
लाल रंग मेहंदी का चढ़ना, अच्छा लगता है
नये निराले नाज और नखरे नित्य दिखाती हो ,
यूं इतराकर सर पर चढ़ना, अच्छा लगता है
अपनी ज़िद पूरी होने पर लिपटा बाहों में,
मेरे मुंह पर चुम्बन जड़ना,अच्छा लगता है
पहले उंगली पकड़, पहुंचती हो फिर पहुंची तक, धीरे-धीरे आगे बढ़ना ,अच्छा लगता है
काली-काली सी कजरारी तेरी आंखों में,
कभी गुलाबी डोरे पड़ना, अच्छा लगता है
मेरे बिन बोले बस केवल हाव भाव से ही,
मेरे मन की इच्छा पढ़ना ,अच्छा लगता है
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment