कैसे अपना वक्त गुजारूं
हंसी खुशी से मौज मनाते, अभी तलक जीवन जिया है
यही सोचता रहता मैंने ,क्या अच्छा ,क्या बुरा किया है
बीती यादों के बस्ते पर, धूल चढ़ी ,कब तलक बुहारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं
करने को ना काम-धाम कुछ, दिन भर बैठा रहूं निठल्ला
कब तक टीवी रहूं देखता ,मन बहलाता रहूं इकल्ला
इधर-उधर अब ताक झांक कुछ ,करने वाली नजर ना रही
मौज और मस्ती सैर सपाटा ,करने वाली उमर ना रही
लोग क्या कहेंगे, करने के पहले , सोचूं और विचारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं
पहले वक्त गुजर जाता था ,पत्नी से तू तू मैं मैं कर
अब पोते पोती सेवा में ,वह रहती है व्यस्त अधिकतर
झगड़े की तो बात ही छोड़ो ,उसे प्यार का वक्त नहीं है
बाकी समय भजन कीर्तन में, वह मुझसे अनुरक्त नहीं है
भक्ति भाव का भूत चढ़ा है ,उस पर ,कैसे उसे उतारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं
अब तो बीती,खट्टी मीठी ,यादें ही है एक सहारा
बार-बार जिनको खंगाल कर,करता हूं मैं वक्त गुजारा
मित्रों के संग गपशप करके, थोड़ा वक्त काट लेता हूं
दबी हुई भड़ास ह्रदय की, सबके साथ बांट लेता हूं
एकाकीपन में जो बहती ,कैसे अश्रु धार संभालू
कैसे अपना वक्त गुजारूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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