एक नारी सब पर भारी
महिलाएं सब पर पड़ती भारी है
पुरुष सब कुछ सहता है ,लाचारी है
सब चीज पर जताती है अपना अधिकार
कब्जा किए हैं सब तिथि और त्योहार
पहली तिथि गुड़ी पड़वा
तो दूसरी तिथि भाई दूज है
दोनों में ही इनकी होती पूछ है
तीसरी तिथि तीज पर इनका एकाधिकार है
सजती संवरती है,करती सोलह सिंगार है
चौथी चौथ, चारों चौथों पर व्रत रखती है
और रात को चांद का दीदार करती है
पांचवी तिथी बसंत पंचमी
और छठी को छठ है मनाना
सप्तमी को शीतला सप्तमी ,
खिलाती है ठंडा खाना
अष्टमी को होईअष्टमी रखती है
दुर्गा नवमी को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करती है दशमी को विजयादशमी बनाती है
एकादशी को तुलसी का विवाह कराती है
द्वादशी को बछ बारस
और धनतेरस को बरसता है धन
चौदस को रूप की चौदस
और अमावस को होता है लक्ष्मी का पूजन महिलाओं का वर्चस्व होता है हर दिन पर
मर्द विचारा काम में जुटा रहता है महीना भर
इन को खुश करने के लिए कमाता है
कभी जेवर दिलाता है
कभी घेवर खिलाता है
कभी उनको करवा पिलाता है
यह रानी कहलाती है
वह नौकर कहलाता है
पत्नी हमेशा रहती है तनी
और पति पर सदा विपत्ति रहती है भारी
पुरुष सब कुछ सहता है क्योंकि है लाचारी
एक नारी ,सब पर भारी
मदन मोहन बाहेती घोटू
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